पितृ देवो भव

कभी लगता हिमालय तो कभी आकाश से ऊंचा
जगत के जितने भी संबंध व विश्वास से ऊंचा
कभीगर्मी हो सर्दी हो या हो बरसात का आलम
उठाता है वही संतान हित दुनिया के सारे गम
अगर बच्चा मचल जाए हमें यह वस्तुला कर दो
नहीं कुछ चाहिए हमको कहीं से मुझको आ कर दो
भले ही घर में फाके हो मगर संतान कुछ कहती
तो चाहे जैसे लाकर दे पिता दया गंगोत्री बहती
पिता है तो सभी अपनी दुकानें यही विश्वास रहता है
उसे मालूम होता क्या पिता क्या क्यान सहता है
बहुत से देवता देवी हैं उस भगवान के आगे
पिता स्थान ऊंचाहै सभी प्रतिमान के आगे
खिलाकर डांटता भी है कभी फटकार भी देता
कभीकोई ना कुछ कह पाए कह कर प्यार भी देता
इस दुनिया में नहीं कुछ भी पिता सम्मान के आगे
जो अपनी हर खुशी हसरत सदा संतान हित त्यागे
यहां पर जो भी पैगंबर या जो अवतार होते हैं
कभी रोते नहीं पर याद आता बाप रोते हैं
पिता ब्रह्मा पिता विष्णु पिता है रूप शिव शंकर
पिता सर्वोच्च होता है जो रहता याद जीवन भर

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