संदेश महल समाचार
90 प्रतिशत ढाबे, होटल,कारखाने और दुकानों आदि में काम करने वाले छोटू कोई और नहीं बल्कि बाल श्रमिक होते हैं। यह एक कॉमन नाम से है, जिससे इनको पुकारा जाता है। एक आवाज मारते ही छोटू सबके पास होता है और पलक झपकते ही काम कर देता है। लेकिन इन बाल श्रमिकों की असल जिंदगी चुनौतियों और परेशानियों से भरी होती है। यह अपना बचपन खोने के साथ ही हर वह दर्द सहते हैं, जिसको एक आम इंसान महसूस तक नहीं कर सकता है। हिंदुस्तान से बातचीत में बाल श्रमिकों ने अपनी जो बातें हमारे सामने रखी वह झकझोर देने वाली थी।जिले में काम कर रहे बाल श्रमिकों की हालत चिंताजनक है। वह अपने बचपन में वह जीने के बजाय पेट पालने के लिए काम कर रहे हैं। ढाबों, होटलों,कारखानों, ईंट भट्टों, दुकानों और गाड़ी मैकेनिक की दुकानों पर यह काम करते देखे जा सकते हैं। इनका कहना है कि एक तो इनको मेहनताना कम मिलता है, इसके अलावा आने और जाने का कोई समय भी तय नहीं है। उनको पता है कि बाल श्रम अपराध है लेकिन वह किसी न किसी मजबूरी वश काम करने को आते हैं। श्रम विभाग की ओर से समय समय पर इनको बाल श्रम से मुक्त तो करा दिया जाता है लेकिन इनका कहना है कि हम काम पैसों के लिए करते हैं। मुक्त कराए जाने के बाद हमारा काम छूट जाता है और दोबारा हमको काम ढूंढने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। यदि मुक्त कराते समय हमारी गुजारे भर की आर्थिक मदद हो जाए तो बेहतर रहे। इनका कहना है कि हमारा स्कूल में एडमिशन करा दिया जाता है, वह जरुरी है। लेकिन हमारी आर्थिक परेशानियां दूर होने के बजाय बढ़ जाती हैं। बताते हैं कि किसी किसी जगह पर तो मालिक इनके साथ बेहतर व्यवहार करते हैं लेकिन ज्यादातर जगहों पर इनको बेज्जती का सामना करना पड़ता है। जिस उम्र में बच्चे घर में लाड़ प्यार में पल रहे होते हैं उस उम्र में यह अपना बचपन खोकर काम करते हैं। दुकानों पर आने वाले ग्राहकों के सामने जी हुजुर करना इनकी मजबूरी है। जरा भी गलती होने पर डांट पड़ना तय है। समय समय पर श्रम विभाग, जिला प्रोबेशन और समाजसेवी संस्थानों की ओर से इनको बाल मजदूरी से छुड़ाया जाता है लेकिन इतने मात्र से इनका काम नहीं चलता है। घर में आर्थिक कमी के चलते यह दोबारा से काम में लग जाते हैं। बाल श्रमिकों ने बातचीत में बताया कि हम कोई अपनी मर्जी से काम करने नहीं आते हैं। हमारे सामने कुछ न कुछ मजबूरियां होती हैं।