कांवड़ यात्रा राजघाट से चलकर पिसावां में किया विश्राम

रिपोर्ट/ ठाकुर प्रसाद सीतापुर संदेश महल समाचार

पिसावा क्षेत्र के रमुवांपुर व ठकुरेपुर से कांवड़ यात्रा राजघाट से चलकर पिसावां तक पहुंचें इस कांवड़ यात्रा के संरक्षक अनन्तपाल निवासी ग्राम रमुवांपुर के माध्यम से कांवड़ यात्रा की अगुवाई कर रहे है कार्यक्रम और थोड़ी देर विश्राम व भोजन ग्रहण करने के बाद में गोला गोकरण नाथ के लिए हुए रवाना
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। सावन माह में शिव भक्त गंगातट पर कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको कांवड़ पर बांध कर कंधों पर लटका कर और छोटी काशी गोला गोकरण नाथ शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकट को दूर करते हैं। पुराण में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे आसान रास्ता है।पुरांडों के अनुसार कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा की परंपा और कांवड़ ले जाने क्यों
कांवड़ यात्रा को लेकर पहली
मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की।
कांवड़ यात्रा को लेकर दूसरी मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर दूसरी मान्यता है कि
आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था
कांवड़ यात्रा को लेकर तीसरी मान्यता ।
प्राचीन ग्रंथों में रावण को पहला कांवड़िया बताया है। समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था और वे तभी से नीलकंठ कहलाए थे। लेकिन हलाहल विष के पान करने के बाद नकारात्मक शक्तियों ने भगवान नीलकंठ को घेर लिया था। तब रावण ने महादेव को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त के लिए रावन ने ध्यान किया और गंगाजल भरकर पुरा महादेव’ का अभिषेक किया जिससे महादेव नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त हो गए थे। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा भी प्रारंभ हो गई।
कांवड़ यात्रा को लेकर चौथी मान्यता
कुछ विद्वान का मानना है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार ने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए कांवड़ बैठया था। श्रवण कुमार के माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी, माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार कांवड़ में ही हरिद्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया। वापसी में वे गंगाजल भी साथ लेकर आए थे। बताया जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।

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