डायरेक्टर
न्यूरोइंटरवेन्शन
अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस
आर्टेमिस हॉस्पिटल,गुरुग्राम दिल्ली
सिर में किसी प्रकार के चोट के कारण सर्वाधिक आशंका इसी बात की होती है कि आसपास खून का थक्का जमा हो जाता है जिसके चलते ब्रेन में खून का दबाव बढ़ जाता है। ये उम्रदराज लोगों में भी हो सकता है या फिर वैसे लोगों में इसके होने की आशंका रहती है जो एंटीकॉग्यूलेंस जैसी दवा का सेवन करते हैं। सामान्यतया कम खून जमने की स्थिति में इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं, जबकि अधिक मात्रा में खून जम जाने पर मरीज कोमा में जा सकता है। उम्रदराज लोगों में साधारण हेड ट्रोमा की स्थिति में क्रॉनिक सब ड्यूरल हेमाटोमा की बीमारी हो सकती है। अधिकतर मामलों में इसके कारणों का पता नहीं चल पाता है। क्रॉनिक सबड्यूरल हेमाटोमा याददास्त जाने वाली बीमारी डीमेंसिया का एक प्रमुख कारण होती है, जिसका इलाज संभव है। क्रॉनिक सबड्यूरल हेमाटोमा के कारणों से संबंधित एक रिपोर्ट के मुताबिक 72 प्रतिशत मामलों में गिरने या लड़ाई के दौरान चोट लगने के कारण यह बीमारी होती है, जबकि 24 प्रतिशत मामलों में यह वाहन दुर्घटना के चलते होती है।
सबड्यूरल हेमाटोमा के खतरे-क्रॉनिक अलकोहलिज्म, इपीलेप्सी या मिर्गी, कॉग्यूलोपैथी, एंटीकॉग्यूलेंट थरेपी जिसमें एस्पीरीन भी शामिल, कार्डियोवस्क्यूलर बीमारियां जैसे हाइपर टेंसन, आर्टरियोस्केलेरोसिस, थ्रम्बोसाइटोपेनिया व डायबीटिज मेलिटस । यदि सबड्यूरल हेमाटोमा का आकार बढ़ जाता है, तो इससे ब्रेन में खून का दबाव बढ़ जाता है और ब्रेन के टिस्सू अपने स्थान से खिसक सकते हैं। अगर सबड्यूरल हेमाटोमा कम हो तो यह अपने आप ठीक भी हो जाता है, लेकिन यदि यह बड़ा होता है तो इसकी सर्जरी जरूरी हो जाती है। सेरेब्रल ऑट्रोफी का सीधा संबंध क्रॉनिक सबड्यूरल हेमाटोमा से होता है। अन्य कारणों में एंटीकॉग्यूलेंट्स, सीजर डिसऑर्डर आदि।
अलकोहलिज्म, थ्रम्बोसाइटोपेनिया, कॉग्यूलेशन डिसआर्डर और ओरल एंटीकॉग्यूलेंट थरेपी युवाओं में सामान्य है, जबकि उम्रदराज लोगों में अधिकतर कार्डियोवस्क्यूलर डिजीज और आर्टेरियल हाइपरटेंसन पाया जाता है। सालाना प्रति 100,000 में 1-1.3 लोगों में यह बीमारी पाई जाती है। पुरुषों में इसके खतरे अधिक होते हैं। जीवन के पांचवे से लेकर सातवें दशक के दौरान क्रॉनिक सबड्यूरल हेमाटोमा की आशंका अधिक होती है। न्यूरोइमेजिंग के माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि हेमाटोमा कब हुआ था। इन्हीं आधारों पर और साथ ही साथ अन्य स्वास्थ्य परीक्षणों के आधार पर इसका इलाज तय किया जाता है। इसमें समय पर इलाज अथवा सर्जरी से जल्दी लाभ पहुंचता है।