रिपोर्ट/- प्रमोद झा
मुरादाबाद संदेश महल समाचार
जनपद में बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता और वांछित व्यवस्था ही अरसे से सवालिया घेरे में है और अभी तक सही मायने आधारभूत सुविधाओं और बच्चों को ककहरा से ऊपर वाली सही शैक्षणिक चेतना को ही बहुत सारे स्कूलों में मजबूत आयाम नहीं मिल रहा है। वास्तविक सतह और सच्चाई पर यूं दावागीर बहुत हैं लेकिन ज्वलंत समस्याओं के समाधानपरक उपायों पर इनकी खामोशी ही देखने को मिल रही है।
ऐसे विभागीय अधिकारियों की कमी नहीं है जो बकायदा स्कूलों का निरीक्षण गुणवत्ता के नजरिए से कर ही नहीं पा रहे हैं। इंग्लिश पब्लिक स्कूलों से स्पर्धा करने की बड़ी बातें करने वालों को जनपद के बदहाल सरकारी स्कूलों में मुंह की ही खानी पड़ेगी। कहीं शिक्षक नदारद तो कहीं बच्चों की ही अनुपस्थिति दिखती है। ऐसे भी सरकारी स्कूल हैं जहां जानवर बांधे जाते हैं। अभिभावकों में जागरूकता की कमी के चलते भी विसंगतियों को बढ़ावा मिला है। ककहरा और अल्फाबेट में भी बच्चों का सीखना ना के बराबर है।
बड़ा विरोधाभास और हैरतनाक बात तो यह भी है कि बच्चों से इतर शिक्षकों को भी बहुत कुछ नहीं आता और पहले इन्हें ही सीखने की बड़ी जरूरत है। विसंगतियों और गुणवत्ता की कमी का एक बड़ा उदाहरण पिछले दिनों ही परिषदीय विद्यालयों में बौद्धिक मूल्यांकन परीक्षा के दौरान ही देखने को मिला । मंडलायुक्त के आदेश पर हुई इस मूल्यांकन परीक्षा और अफसरों की मौजूदगी में 1170 स्कूलों में से 231स्कूलो का लचर प्रदर्शन ही रहा। मूल्यांकन परीक्षा में 231 शिक्षक ही फेल हो गये। मुरादाबाद के मुकाबले अमरोहा के स्कूलों की अच्छी गुणवत्ता सामने आयी। वैसे 929 स्कूलों के विद्यार्थियों को पचास फीसदी से कम प्राप्तांक आए। अधिकारियों ने बच्चों के सीखने की क्षमता का जायजा लिया और पीले तथा लाल श्रेणी के स्कूलों पर अधिक ध्यान देने पर जोर दिया गया। यूं अब गुणवत्ताहीन स्कूलों का चिन्हांकन भी किया जा रहा है।
बहरहाल, अधिकारियों को ये तो पता चल ही गया कि इन स्कूलों की वास्तविक स्थिति क्या है। विसंगतियों के साये में बच्चों की सही शिक्षा व्यवस्था हो नहीं सकती है। स्कूलों में संसाधनों की कमी और निम्न शिक्षण स्तर भी विरोधाभासी प्रतिमान का अनुभव करा रहा है। जहां तक गुणवत्ता पूर्ण बुनियादी शिक्षा के लिए जरूरी साधन, शिक्षण और माहौल की बातें हैं तो इसमें सकारात्मक बदलाव किए बिना बच्चों के करियर को सही से संवारा ही नहीं जा सकता है। विभागीय अधिकारियों को जमीनी स्तर पर सुधार करना होगा। अभिभावकों/ गार्जियंस को भी शिविर लगाकर जागरूक करने की दरकार महसूस की जा रही है।