जेपी रावत
बाराबंकी संदेश महल
यह वो ज़मीन है जहाँ हर मोड़ पर कोई “प्राइवेट हॉस्पिटल” खुला मिलेगा—बिना पंजीकरण, बिना प्रशिक्षित डॉक्टर,बिना किसी जवाबदेही। और चौंकाने वाली बात ये नहीं कि ये सब हो रहा है, बल्कि ये है कि सब कुछ खुलेआम हो रहा है, और प्रशासन जानकर भी चुप है।
हर सप्ताह एक नई मौत। हर बार एक नया नाम, एक नया परिवार बर्बाद। कभी रूबी, कभी गुड़िया, कभी राजेंद्र। हर कहानी एक जैसी—अवैध अस्पताल में भर्ती, गलत इलाज, बिगड़ती हालत, और फिर लखनऊ रेफर—लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। मौत रास्ते में ही हो जाती है।
इन कथित हॉस्पिटलों का धंधा बहुत साफ़ है—गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाओ, “नॉर्मल डिलीवरी” या “फटाफट इलाज” का लालच दो, और जब मामला बिगड़े, तो कह दो ‘रेफर कर दिया था’। कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं, कोई जवाबदेही नहीं, कोई सबूत नहीं।
स्वास्थ्य विभाग सालों से “नोटिस” भेज रहा है, “अभियान” चला रहा है, “टीमें गठित” कर रहा है—लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस है। क्यों?
क्योंकि इन मौतों का शोर सड़कों तक नहीं पहुँचता। क्योंकि ये मौतें गरीबों की हैं—वो जिनकी आवाज़ वोट बैंक तो बन सकती है, लेकिन इंसाफ की लड़ाई नहीं।
प्रश्न उठते हैं—
क्या इन झोलाछाप डॉक्टरों को किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है?
क्यों इन अस्पतालों को बार-बार “नोटिस” देकर छोड़ दिया जाता है, जब जानें जा रही हैं?
कितनी और लाशें चाहिए प्रशासन को, ताकि एक ठोस कार्रवाई की जा सके?
सच्चाई यही है कि सिस्टम में इच्छाशक्ति नहीं है। अगर होती, तो रूबी और गुड़िया आज जिंदा होतीं। अगर होती, तो राजेंद्र का बच्चा आज अपने पिता की उंगली पकड़कर चलता।
आज समय है जनता के जागने का। सिर्फ खबर पढ़कर चुप न बैठिए—शिकायत कीजिए जिलाधिकारी को पत्र लिखिए, जनप्रतिनिधियों से सवाल कीजिए।
हम, “संदेश महल”, इस लड़ाई में आपके साथ हैं।
क्योंकि यह सिर्फ इलाज का सवाल नहीं, यह ज़िंदगी और ज़िम्मेदारी का सवाल है।
कलम की यह चोट तभी असर डालेगी जब आवाज़ एकजुट होगी।अब समय आ गया है—मौत के कारोबार को बंद करने का।
क्या कहता है प्रशासन ?
सीएचसी अधीक्षक डॉ. राजर्ष त्रिपाठी कहते हैं:
शिवांशी हॉस्पिटल को नोटिस दिया गया है, जवाब मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि समय-समय पर अभियान चलते हैं।
“सन्देश महल” की अपील
यह रिपोर्ट सिर्फ कागज़ नहीं, हर पीड़ित की चीख है। अगर आपके क्षेत्र में भी इस तरह की लापरवाही या अवैध अस्पताल का मामला है, तो हमें बताएं। हम आवाज़ उठाएंगे, जिम्मेदारों को जगाएंगे। अब बस, इलाज के नाम पर मौत नहीं?