मेरी शादी प्रेम विवाह थी

मेरी शादी प्रेम विवाह थी, और इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे पूरे परिवार से मेरा सारा संपर्क टूट गया। शादी के बाद मेरी पूरी दुनिया एक ही इंसान के इर्द-गिर्द सिमट गई। मेरे पति,जय, बहुत ही खुले विचारों वाले हैं। उन्होंने मुझे कभी किसी बात के लिए रोका-टोका नहीं।

शादी के बाद, जैसे हर स्त्री की चाहत होती है, मैंने भी माँ बनने की इच्छा जाहिर की। जय ने मेरी बात को पूरा महत्व दिया, हालांकि हमारी आर्थिक स्थिति उस वक्त पूरी तरह अनुकूल नहीं थी। फिर भी, हमने फैमिली प्लानिंग की और आगे बढ़े।

पर न जाने क्यों,जय के मन में यह बात गहराई से घर कर गई थी कि उन्हें सिर्फ बेटा ही चाहिए। एक बार उन्होंने मुझसे यह भी कहा था कि वे बेटी नहीं चाहते। वहीं, हर कोई कहता था कि मुझे तो बेटा ही होगा। लेकिन मेरे मन में एक डर था – “अगर लड़की हुई तो क्या होगा?” हालांकि, जय ने कभी किसी जाँच या लिंग परीक्षण की बात नहीं की। उन्होंने मेरा हर तरह से ख्याल रखा, लेकिन मैं अपने डर को कभी उनके सामने व्यक्त नहीं कर पाई।

समय बीतता गया और 9 महीने कब गुजर गए, पता ही नहीं चला। आखिरकार वह दिन आ गया जब मुझे डिलीवरी के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस समय हमारे साथ कोई बड़ा नहीं था, जो हमें हिम्मत दे। लेकिन जय हर पल मेरे साथ थे।

सबकुछ सही चल रहा था, लेकिन अचानक डॉक्टर ने कहा कि बच्चे की धड़कनें बहुत तेज हो गई हैं और ऑपरेशन करना पड़ेगा। हम सब बहुत परेशान हो गए थे। खैर, मुझे ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया और जैसे ही मुझे एनेस्थीसिया दिया गया, मैं दूसरी दुनिया में चली गई।

जब मुझे होश आया, तो मैंने सुना, “It’s a baby girl.” उस अधमूंदी स्थिति में भी, मैं सहम गई। जिस पल का मैं लंबे समय से इंतजार कर रही थी, वह आ गया था, लेकिन मुझे खुशी महसूस नहीं हो रही थी। मेरे मन में खौफ था – “अब क्या होगा? क्या जय हमारे बच्चे को प्यार नहीं करेंगे? कहीं मैं अकेली तो नहीं पड़ जाऊँगी?” मैंने अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देखा था और न जाने कितने बुरे ख़याल मुझे घेर रहे थे।

थोड़ी देर बाद, जब मुझे वार्ड में शिफ्ट किया गया, तो मैं अब भी अपना शरीर हिला नहीं पा रही थी। तभी जय मेरे सामने आए, और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैं बस इतना ही कह पाई, “सॉरी।”

वह मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने मेरा माथा चूमा और कहा, “सॉरी किस बात का? तुम्हें पता भी है कि हमारी बेटी कितनी प्यारी है! मैं बहुत खुश हूँ।” फिर वह हमारी बेटी को लेकर आए। जैसे ही मैंने उसे देखा, मुझे लगा कि मुझे एक नई जिंदगी मिल गई है। सारी मायूसी एकदम गायब हो गई।

जय ने बताया कि उन्हें बेटी नहीं चाहिए थी, लेकिन जब उन्होंने अस्पताल में उसे पहली बार देखा तो 12 बच्चों के बीच उन्हें पता भी नहीं था कि हमारी बेटी कौन सी है। नर्स ने उसका वेंटिलेटर नंबर बताया और जय ने उसे पहचाना। जैसे ही बेटी ने जय को देखा, उसने अपनी उंगली उनकी ओर उठाई। जैसे वह कह रही हो, “मुझे गोद में ले लो, पापा।” बस, उस एक पल ने जय की पूरी सोच बदल दी।

उन्होंने कहा, “मैं पागल था, जो ऐसी सोच रखता था।”

उस दिन के बाद से, बिटिया जय की जान बन गई। वह मुझसे कहीं ज्यादा अपने पापा के करीब है। उसे पापा से कुछ भी मनवाना हो, वह जानती है कि पापा कभी मना नहीं करेंगे। एक खरोंच भी उसे बर्दाश्त नहीं होती।

अब मेरे दिल में जय के लिए प्यार और सम्मान और भी ज्यादा बढ़ गया है।

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