दुर्गा दुर्गति हरिणी
जय अंबे जगदंबे मैया
लेखनी कार जब भी लिखना तो कुछ अंगारे लिख देना तुम वेदव्यास तुम बाल्मीकि
रत्नाकर तुलसी सूरदास
तुम हो रहीप रसखान तुम ही
हो कर सकते तम का विनाश
तुम कर सकते जागृत समाज
नवक्रांति भरो जनजीवन में
जो पड़ा
सुस्त उठ कर जागे
हुंकार उठे तन में मन में
अब भंवर पुष्प कल्पना नहीं
कुछ आंसू खारे लिख देना
लेखनी कार जब भी लिखना तो कुछ अंगारे लिख देना जो जाति धर्म विशफैल रहा
बन शंकर इसको पीना है
कश्मीर कुमारी कन्या तक
सद्भाव प्यार से जीना है
जो फैल रहा रहा आतंकवाद
निर्मम हत्याएं जो होती
भारत भू पर यह है कलंक
कितनी बहने मां है रोती
सब एक रहें एकता रहे
सब लोग हमारे लिख देना
लेखनी कार जब भी लिखना तो कुछ अंगारे लिख देना हर घर में हो राणा प्रताप
अब्दुल हमीद से बलिदानी
आजाद भगत सिंह शिवा वीर
हंस कर दे दे हर कुर्बानी
उनको अवश्य चिन्हित कर दो
जो शांति प्रक्रिया में बाधक
जो घोटालों के जनक बने
आतंकवाद के हैं साधक
जो लूट रहे उन लोगों के
कुछ वारे न्यारे लिख देना
लेखनी कार जब भी लिखना तो कुछ अंगारे लिख देना जनप्रतिनिधि क्या कर रहे आज
हर व्यक्ति के सम्मुख लाओ
जो हैं कलंक भारत भू पर
उनको फांसी पर चढ़ वाओ
हर देशभक्त सम्मानित हो
हर प्रतिभा अवसर पा जाए
सुचिता हो क्रियाकलापों में
सामाजिक जीवन हर साए
अर्पण होते बलिवेदी पर वह
चांद सितारे लिख देना
लेखनी का जब भी लिखना तो कुछ अंगारे लिख देना