गंगा की अविरलता – स्वच्छता
—————————-
भारत के उत्तर में शोभित,
गिरिराज जिसे हम कहते हैं।
प्रहरी बनता तम रातों का,
जब हम सब सुख से सोते है ।।
वह सुनता करूण पुकार सदा,
जब नीर हेतु बिलखाते हैं ।
गंगा जैसी पावन नदियाँ,
तब पर्वतराज बहाते हैं ।।
विष्णु के चरणों से निकली,
सुर भी यश माँ का गाते हैं ।
गंगा मैय्या के शुभ दर्शन पर,
हम सब शीश झुकाते हैं ।।
परम पावनी माँ गंगा में,
जो प्राणी जा के नहाते हैं ।
जन्म-जन्म के पाप पुंज भी,
अवगाहन से मिट जाते हैं ।।
माँ गंगा की महिमा गाने में,
शब्द न्यून पड़ जाते हैं ।
यश गाते-गाते वर्षो से,
कविगण भी थक जाते है ।।
गंगाजल की अति पवित्रता,
उन्मुक्त कण्ठ से गाते हैं ।
शुभ कर्मों के सम्पादन में,
गंगा जल ही लाते हैं। ।
रक्खो वर्षों तक गंगाजल,
कीडे नही पनपते हैं ।
इनकी इसी महत्ता से ही,
देवनदी भी कहते है ।।
ऐसी परम पावनी गंगा को,
शहरों ने हवस बना डाला।
अवशिष्ट बहाकर नालों से,
गंगा मैली कर डाला।।
नीर सुधा सम फिर करने को,
हिलमिल कर अभियान चलाये।
मोक्षदायनी माँ गंगा को,
पहले जैसा स्वच्छ बनाये ।।
नेक इरादा जन-जन में हो,
कृपा राम की फिर हो जाये।
‘बेताब’ कहत फिर गंगा मैय्या,
अविरल धारा सदा बहाये ।।