जयप्रकाश रावत
बाराबंकी संदेश महल
शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही शादियों में इस बार एक चीज़ ने चुपचाप दस्तक दी है। और वो है ‘छेना’। परोसी जा रही मिठाइयों की थाली से रसगुल्ला जैसे अचानक ग़ायब हो गया है। उसकी जगह अब छेना या उसके जैसे दिखने वाले हल्के मीठे पकवान परोसे जा रहे हैं,जो मिठाई तो हैं, पर रसगुल्ले की तरह रसदार नहीं।
महंगाई बन गई मिठास की दुश्मन?
शादी आयोजकों और मिठाई विक्रेताओं का कहना है कि दूध और चीनी की कीमतों में हुई वृद्धि के चलते रसगुल्ला बनाना अब पहले जितना आसान या किफायती नहीं रहा। एक रसगुल्ला बनाने में जितना खर्च आता है, उतने में दो से तीन छेना मिठाइयां तैयार हो जाती हैं। यही वजह है कि आयोजक अब कम खर्च में अधिक मिठाई देने का उपाय खोज रहे हैं।
बदलते स्वाद पर जनता की राय
स्थानीय निवासी राकेश कुमार बताते हैं, “पहले शादी में थाली में रसगुल्ला देखकर मन खिल उठता था, अब लगता है जैसे कुछ अधूरा रह गया।” वहीं युवाओं का कहना है कि अब मिठाइयों में वैरायटी तो मिल रही है, लेकिन पारंपरिक मिठास खोती जा रही है।
मिठाई विक्रेताओं का तर्क
शहर के एक नामचीन हलवाई दिनेश यादव ने बताया,“छेना से बनी मिठाईयों में लागत कम आती है,और बड़ी मात्रा में बनाना आसान होता है। आयोजक खुद कहते हैं कि बजट में मिठाई चाहिए, तो रसगुल्ला हटा दो।
संस्कृति से समझौता?
मिठाइयों के जानकारों और संस्कृति प्रेमियों का मानना है कि रसगुल्ला केवल मिठाई नहीं, भावनाओं का हिस्सा है। यह केवल स्वाद नहीं, एक परंपरा है।और इसका इस तरह ग़ायब होना चिंता का विषय है।शादियों की चमक-दमक में जहां कपड़े, सजावट और डीजे पर कोई समझौता नहीं दिखता, वहीं मिठाई की थाली में रसगुल्ले की अनुपस्थिति कहीं न कहीं समाज के बदलते मूल्य और प्राथमिकताओं की ओर इशारा करती है। सवाल यह है। क्या रसगुल्ला वाकई थाल से जा चुका है, या फिर वह किसी ख़ास बीआईपी मेहमान की प्लेट में छुपा बैठा है?
रेडीमेड छेना — शादियों की मिठास में घुला इंस्टेंट समाधान
अब समय आ गया है कि हम एक कड़वा सच स्वीकार कर लें।शादियों की मिठाइयों में न अब कढ़ाही की खनक है, न हलवाई की पसीने वाली मेहनत।क्योंकि अब बाज़ार में आ चुका है रेडीमेड छेना फ्रीज से निकालो,काटो,परोस दो। स्वाद? अरे, वही तो सबसे बड़ा रहस्य है।
रेडीमेड छेना वह प्राणी है जो दिखने में रसगुल्ले जैसा, खाने में रबर जैसा और स्वाद में सरकारी योजना जैसा होता है। नाम तो है, पर भरोसा नहीं होता।शादी में जब थाली में ये छेना आता है, तो बाराती एक पल को सोचते हैं। “कहीं यह पैक्ड पनीर तो नहीं?”
हलवाई अब किचन से बाहर
पहले हलवाई शादी में दो दिन पहले पहुंचता था। भट्ठी सुलगती थी,दूध उबालता था रसगुल्ला सिझता था।अब पूछो तो जवाब मिलता है। “भाईसाब, रेडीमेड छेना आ गया है, टाइम क्यों खराब करें?आदमी कहे तो कहे क्या? रसगुल्ला अब प्रेम नहीं, प्रोडक्ट बन गया है। रेडीमेड छेना और आज के समाज में गजब की समानता है।दोनों को बनाने में मेहनत नहीं लगती, दोनों दिखने में सुंदर होते हैं, और दोनों को देखकर भीतर से कुछ खाली-खाली सा लगता है।छोटे बच्चों की प्रतिक्रिया सबसे सच्ची
एक शादी में आठ साल के चिंटू ने जैसे ही छेना उठाया, चखते ही चिल्लाया।मम्मी, ये जम गया है क्या?उसकी मासूमियत ने वही कहा जो हम बड़े मन में सोचते हैं, पर सभ्य समाज होने के नाते चुप रहते हैं।
निष्कर्ष
रेडीमेड छेना का दौर चल रहा है। इंस्टेंट स्वाद, इंस्टेंट शादी, इंस्टेंट थाली।पर याद रखना चाहिए। मिठास हमेशा शुद्धता से आती है। शॉर्टकट से नहीं।कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में मिठाई की जगह “मीठा फ्लेवर पाउडर” परोसा जाए,और मेहमान सिर्फ कहें। याद तो रसगुल्ले की आ गई।