सच्चे मित्र की पहचान कठिन समय में ही होती है श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन हुई सुदामा चरित की कथा

 

हिमांशु यादव
मैनपुरी संदेश महल समाचार
जनपद मैनपुरी बिछवां क्षेत्र के गांव खटाना में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन की कथा में सुदामा चरित की कथा सुनाई गई। कथावाचक शिव कुमार त्रिपाठी ने सुदामा चरित की कथा सुनाते हुए कहा कि आज के समय में सच्चे मित्र मिलना मुश्किल है। आजकल केवल मतलब की मित्रता रह गई है। अगर हमें मित्रता की परख करनी है तो हमें क्रष्ण सुदामा से सीख लेनी चाहिए। कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र के सुख में सुखी और दुःख में दुःखी हो। सच्चे मित्र की पहचान कठिन समय में ही होती है। मित्र के साथ कभी भी छल कपट नहीं करना चाहिए। गुरु मां ने जो चने दिये थे वह सुदामा जी ने अकेले ही खा लिए थे और चना क्रष्ण भगवान को नहीं दिये थे। वहीं वजह रही कि सुदामा जी को दरिद्रता भोगनी पड़ी। और जब सुदामा जी दाने दाने को मोहताज हो गए तब उनकी पत्नी सुशीला ने श्री क्रष्ण भगवान के पास जाने को कहा तो भगवान ने उनकी सारी परेशानी दूर करने का काम किया। सच्चा मित्र वही है जो कठिन से कठिन समय में भी अपने मित्र का साथ न छोड़ें। उन्होंने कहा कि महाभारत में दुर्योधन और कर्ण की मित्रता भी एक मिसाल है। दुर्योधन की युद्ध में हार के बाद भी दुर्योधन ने कर्ण का साथ नहीं छोड़ा। राम और सुग्रीव की मित्रता भी एक उदाहरण है। अंतिम दिन की कथा में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। इस अवसर पर परीक्षत प्रतिमा शुक्ला व ललित मोहन शुक्ला, उमा शुक्ला, कैलाश चंन्द्र शुक्ला, विमलेश कुमार, भावना शुक्ला, सौरभ शुक्ला आदि लोग मौजूद थे।

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