जेपी रावत
बाराबंकी संदेश महल समाचार
सूरतगंज महल किले की दीवार गिरने से कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। जिसके चलते किले के आसपास रहने वाले लोगों को खतरा बना हुआ है।सुरक्षा को लेकर लोगों को चिंता पैदा हो गई है।
गौरतलब हो कि भारत के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सीमावर्ती जनपद बाराबंकी से 38 किमी उत्तर दिशा स्थित कस्बा सूरतगंज का अपना एक अनोखा इतिहास है। जिसका संबंध रैकवार वंश से माना जाता है।
इस वंश के पूर्वज साल देव और बाल देव थे। इनकी उत्पत्ति राका देव से है। जिनका राज्य रामनगर धमेरी था।
राजा सरबजीत सिंह, रामनगर-धमेरी के 9वें राजा हुए जो 1857 में गद्दी के लिए सफल हुए, और अपव्यय का जीवन शुरू किया और संपत्ति भारी बोझिल हो गई।1888 में इसे कोर्ट ऑफ वार्ड्स के प्रबंधन में लिया गया था और जुलाई 1901 में ही जारी किया गया था। 4 दिसंबर 1877 को राजा की उपाधि को वंशानुगत के रूप में मान्यता दी गई थी। राजा सरबजीत सिंह के संबंध में बताया जाता है कि
कादिरजहां नाम की बेगम थी।जो राजा सरबजीत सिंह कोठी सूरतगंज में बनाई गई थी। इस कोठी में बेगम कादिर जहां अधिकतर समय व्यतीत किया करती थी। वर्तमान में कोठी खंडहर में तब्दील हो चुकी है। जिसके कुछ हिस्से टूटकर गिर चुके हैं। दीवारें गिरने के कगार पर है। इन दीवारों के गिरने से कभी भी कोई बड़ी घटना घटित हो सकती है। जिसके चलते कोठी के आसपास रहने वाले लोगों को भय है। स्थानीय लोगों का कहना है कि राजा के वंशजों की जिम्मेदारी है कि सूरतगंज किले की व्यवस्था को गंभीरता से लेते हुए लोगों की समस्यायों को नजर अंदाज न करें।हालत यह है कि महल किले की दीवारों के हिस्से किसी भी समय ढह सकते हैं।