परिषदीय विद्यालयों का गिरता स्तर बुनियादी शिक्षा की कवायद अधूरी

रिपोर्ट/- रामकुमार मौर्य बाराबंकी संदेश महल समाचार

परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को भोजन, किताबें ,बस्ता ,जूता, मोजा, ड्रेस फ्री मिलती है,फिर भी इन विद्यालयों के बच्चे आज भी वही पर हैं।इनमें कोई बदलाव नहीं आया।जबकि विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक प्रशिक्षित हैं।फिर भी पढ़ाई अच्छे ढंग से नहीं हो पा रही है।प्राइवेट स्कूलों की यदि तुलना की जाए तो परिषदीय विद्यालयों का स्तर शून्य होता दिखाई दे रहा है।

जबकि प्राइवेट स्कूलों में कम वेतन पर शिक्षक बच्चों को मन लगाकर पढ़ाते हैं और समय पर विद्यालय भी पहुंच जाते हैं। इन विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी बोर्ड की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त कर नाम रौशन भी कह रहे हैं। चाहे
आईएस,पीसीएस,इंजीनियर,डॉक्टर ,न्यायधीशजैसे पदों पर कंपटीशन बीट कर मुकाम हासिल करने में इनके कदम पीछे नहीं हैं।सरकारी स्कूलों की दशा दिनों दिन क्यों बिगड़ती जा रही है जबकि योग्य शिक्षक हैं फिर भी पढ़ाई का स्तर गिरने का क्या कारण है।यह सोचनीय पहलू है। स्थानीय लोगों का कहना है की अध्यापक समय से विद्यालय नहीं पहुंच पाते हैं जबकि इनके पास संसाधन भी मुहैया है।बुनियादी शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान जैसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें भी नहीं मिल पा रहीं हैं। यहां तक कि बाल शिक्षा का अधिकार जैसे कानून भी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की दशा सुधारने में नाकाम साबित हो रहे हैं। स्कूल चलो अभियान के बाद भी स्कूलों में बच्चों की कम उपस्थिति देख कर कामयाबी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

बेसिक शिक्षा विभाग तमाम तरह के दावे कर रहा है, लेकिन उसकी तह तक अगर देखा जाए तो सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। अब किताबों को ही ले लीजिए,नवीन शिक्षा सत्र शुरू कर दिया गया पर अभी तक बच्चे को क ख ग सीखने के लिए किताब मयस्सर नहीं हुई।
विभागीय सूत्रों की मानें तो हर साल किताबें कम संख्या में आतीं हैं। विभाग में दर्ज बच्चों की संख्या के सापेक्ष किताबें न मिलने से हजारों बच्चे पुस्तकों से वंचित रह जाते हैं।
सूबे के प्रत्येक जिले को शिक्षा निदेशालय लखनऊ से किताबें भेजीं जाती हैं। सत्र बीत जाने के बाद भी किताबें पर्याप्त उपलब्ध नहीं हो पाती है।