जेपी रावत
संदेश महल समाचार
(1) जिस रकबे में जैविक खेती की जाना है उस रकबे के पूर्ण क्षेत्र में जैविक खेती
ही करना हाेगा। जैविक एवं अजैविक खेती एक साथ करना अमान्य है।
(2) जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रथम वर्ष गहरी जुताई करना भी एक
कारगर उपाय है।
(3) जैविक खेती के पूर्व प्रक्षेत्र की मेड़ाें पर उपलब्ध कचरा एवं अन्य वानस्पतिक
समुदाय काे समाप्त करना अति आवश्यक है क्याें कि मेड़ों पर उपलब्ध
खरपतवारों के बीज खेताें में स्थानान्तरित हाे जाते हैं। वर्तमान में अभी ऐसे
जैविक खरपतवारनाशी नहीं है जिनके छिड़काव से खरपतवार का नाश किया
जा सके। जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण का कारगर उपाय निदाई एवं
खेताें की तैयारी है।
(4) जैविक खेती शुरू करने से पूर्व प्रति हैक्टर नाडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट के मान से तैयार करना चाहिए। यदि नाडेप कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट खेत पर
तैयार नहीं किये गये ताे जैविक खेती की लागत बढ़ जाती है तथा बाजार से
क्रय की गई खाद महॅंगी एवं शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है।
(5) नाडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट के भरने हेतु गाेबर मुख्य कम्पोनेन्ट हैं। अतः प्रति
हैक्टेयर एक गाेवन्स पाले जाने भी आवश्यक है।
(6) तैयार किये गये नॉडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट हेतु एक निर्धारित कार्यक्रम तैयार
किया जावे एवं भरने हेतु फसल अवशेष एवं कचरा की उपलब्धता काे दृष्टिगत
रखते हुए स्राेताें काे सूचीबद्ध किया जाना आवश्यक है।
(7) जैविक खेती में उपयोग में लाये जाने वाले जैविक कीटनाशक की तैयारी बोई
जाने वाली फसलों के आधार पर एक माह पूर्व करना आवश्यक है।
(8) हरी खाद सन, ढेंचा, उड़द, मूॅंग इत्यादि से तैयार की जावे।
(9) जैविक खेती लगातार तीन वर्ष तक करने से आदान (खाद एवं कीटनाशी) की
लागत घट जाती है तथा उत्पादन में क्रमशः बढ़ौतरी हाेती है इससे यह मुख्य लाभ है कि यदि जैविक उत्पाद सामान्य बाजार मूल्य पर बेचा जावे ताे भी लाभ की स्थिति रहती है।
(10) जैविक खेती हेतु समस्त आदान खेत स्तर पर तैयार किये जाते हैं इसी कारण
जैविक खेती की लागत कम एवं लाभ अधिक हाेता है।
उपराेक्त अनुसार कार्य करने पर जैविक खेती में सफलता हासिल हाे सकती है।
जैविक खेती से होने वाले लाभ
कृषिकाें की दृष्टि से लाभ-
भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हाे जाती है।
सिंचाई अंतराल में वृद्धि हाेती है।
रासायनिक खाद पर निर्भरता कम हाेने से कास्त लागत में कमी आती है।
फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
बाजार पर निर्भरता कम हाे जाती है।
मिट्टी की दृष्टि से-
जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा। मिट्टी का गैसीय संतुलन बना
रहता है।
पर्यावरण की दृष्टि से-
भूमि के जल स्तर में वृद्धि हाेती है। मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी
के माध्यम से हाेने वाले प्रदूषण में कमी आती है। कचरे का उपयोग, खाद
बनाने में, हाेने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में
कमी एवं आय में वृद्धि अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की
गुणवत्ता का खरा उतरना।
जैविक खेती, की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या
अधिक उत्पादन देती है अर्थांत जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकाें की
उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णतः सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि
और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत
ताे कम हाेती ही है इसके साथ ही कृषक भाइयों काे आय अधिक प्राप्त हाेती है तथा
अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके
फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा
शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक
है। मानक जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हाें, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौष्टिक आहार मिलता रहे, इसके लिये
हमें जैविक खेती की कृषि पद्धतियों काे अपनाना हाेगा जाे कि हमारे नैसर्गि क संसाधनों
एवं मानवीय पर्यावरण काे प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस काे खाद्य सामग्री
उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी…………….!
शेष अगले अंक में……..