सुहाग रात मनाने आये थे वो,सुहागरात मना कर चले गए ?

सुहाग रात मनाने आये थे वो
“सुहागरात मना कर चले गए…!!

मेरी गरिमा पर अपने पुरुषार्थ का ,
रंग चढ़ा कर चले गए ।

मैं भोली निपट अभागन सी ,
जब तक इसका अर्थ समझती ,
तब तक वो अपनी कामुकता की ,
एक तस्वीर दिखाकर चले गए ।

जिस रात को मैंने सपनो में देख ,
एक झिल-मिल छवि बनायी थी ,
उस रात को वो अपनी जुबानी से ,
दो शब्दों में समझाकर चले गए ।

मेरे कितने अधूरे सवालों को ,
जवाबों की एक आस थी ,
उन सभी सवालों पर वो ,
एक सवालिया निशान लगाकर चले गए ।

सखियों ने अब तक समझायी थी ,
जो रात “सुहाग” की बेला की ,
ऐसी झूठी रात की वो एक …..
मज़ार सज़ा कर चले गए ।

कैसे पूछूँ ……किससे पूछूँ ,
उस रात की अदभुत कहानी मैं ?
मुझे उस रात की कहानी का वो ,
बस एक शीर्षक बताकर चले गए ।

सालों बीते ……सदियाँ बीतीं ,
कितनी रातों की घड़ियाँ बीतीं ?
हर रात में आकर वो अपने सिर्फ ….
अरमान बुझाकर चले गए ।

ना मैंने कुछ उनको कहा …
ना उन्होंने कुछ मुझको बतलाया ,

बस उस रात की चम-चम बेला में …
वो सितार बजाकर चले गए ।

मैं अपने सवालों को साथ लिए ,
अंतर्मन के द्वन्दों से झूझ रही ,
वो हर उठने वाले द्वन्द को ….
एक नया द्वन्द बनाकर चले गए ।

मुझे उस रात की चाहत जब-जब हुई ,
मैं तन्हाई में उसको समझती रही ,
पर उस रात को वो इतनी निर्दयी ….
और संगीन बनाकर चले गए ।

एक सखी ने मेरी मुझको बतलाया ,
उस रात का अर्थ होता है एक माया ,
वो उस माया रुपी रात में मुझको ,
अपना वजूद बताकर चले गए ।

मैं आज भी उनसे सुनने को …..
उस रात की मीठी बातें बैठी हूँ ,
वो आज भी मुझसे उन बातों को ….
ना करने की …
एक कसम ठान कर चले गए ।

“सुहागरात” का अर्थ नहीं होता ….
सिर्फ कोरी निपट आलिंगन की छाया ,
अपनी संगिनी को समझो ऐसे उस क्षण में ,
कि वो जीवन भर याद करे उन पलों की माया ।

वो पहले वाली रातें जिनमे कभी ….
हज़ारों बातें होती थी ,
उन सारी बातों को अब केवल ,
एक हवस का नाम बनाकर चले गए।

एक सेक्स वर्कर के डायरी से लिये गए उसके
कुछ अल्फाज उसकी अंतर_आत्मा की आवाज
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