सूरतगंज बाराबंकी संदेश महल
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद निजी विद्यालय संचालकों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। शिक्षा क्षेत्र सूरतगंज में बिना मान्यता के चल रहे दर्जनों प्राइवेट स्कूलों पर जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग मौन धारण किए हुए है। ऐसा क्यों और किस लिए किया जा रहा है, इसका जवाब शायद ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास होगा। हालांकि खानापूर्ति के लिए विभाग द्वारा इनपर नकेल कसी जाती है, इसके बावजूद क्षेत्र में चल रहे यह विद्यालय न केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं बल्कि इनके अभिभावकों से पढ़ाई के नाम पर मोटी फीस भी वसूल रहे हैं। क्षेत्र के लोगों ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बिना मान्यता के चल रहे प्राइवेट स्कूलों पर कार्रवाई की मांग की है। बतादें कि सूरतगंज शिक्षा क्षेत्र के मीरपुर में कविता पब्लिक स्कूल, सहित दर्जन भर से अधिक निजी विद्यालय बगैर मान्यता के बेधड़क चलाए जा रहे हैं। इसको लेकर बीते दिनों शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा छापेमारी भी की गई थी। छापेमारी के दौरान कई स्कूलों का रिकार्ड जब्त किया गया था। किसान पब्लिक स्कूल, सहित कई विद्यालयों को नोटिस भी जारी की गई थी। लेकिन कविता पब्लिक स्कूल पर टीम के अधिकारियों की नजर अब तक नही पड़ी। शायद यही कारण है कि इसका खामियाजा भोले भाले छात्रों और उनके अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है।
सूत्रों की माने तो विभाग की योजना थी कि वर्तमान सत्र में मान्यता विहीन स्कूलों को नहीं चलने दिया जाएगा। इसके लिए इन विद्यालयों की सूची तैयार की गई है। प्रशासनिक अधिकारियों की सख्ती के बाद विभाग ने अभियान तो चलाया गया। लेकिन आज भी कविता पब्लिक स्कूल मीरपुर में धड़ल्ले से चलाया जा रहा है यह विद्यालय टीम की कार्यवाही से वंचित रह गया। जिसके बाद विभाग ने चुप्पी साध ली है। जबकि मान्यता विहीन स्कूलों को बंद कराने के लिए जिला स्तरीय अधिकारियों के अलावा खंड शिक्षाधिकारियों को दायित्व सौंपा गया है। मामले में शिक्षा विभाग उदासीन हैं या यूं कहे कि मौन हैं। शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कुंभकर्णी नींद में मस्त हैं। इस संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी से हमारे संवाददाता ने दूरभाष पर बात की तो उन्होंने कार्रवाई करने का भरोसा दिया है। जबकि मुख्य विकास अधिकारी अ: सुदन ने त्वरित संज्ञान लेकर संबंधित से जांच करने की बात कही है।
मान्यता देने में बड़ा खेल
निजी स्कूलों की मान्यता में भी बड़ा खेल है। ऑनलाइन आवेदन के बाद सेटिंग का खेल शुरू होता है।जिम्मेदारों तक गहरी पैठ बनाकर चढ़ावा चढ़ाने में सफल होने वाला ही मान्यता की बाजी मारता है। अन्यथा आवेदन रद्द हो जाता है। यहां पुरानी परंपरा बरकरार है। चढ़ावा न चढ़ाने पर नियमों के मकड़जाल में संचालकों को उलझा दिया जाता है। वर्तमान सत्र में मान्यता के लिए बेसिक शिक्षा विभाग से अभी बीईओ के निरीक्षण से आगे की कार्रवाई नहीं हो सकी है।
बिना अनुमोदन फीस तय
बता दें कि किसी भी स्कूल में फीस का अनुमोदन वहां की व्यवस्था सुविधा के अनुसार होता है। ऐसे में बिना मान्यता वाले स्कूल का शुल्क कैसे अनुमोदित हो सकता है। समिति की ओर से फीस तय की जाती है। कलेक्टर स्तर की समिति जांच करके फीस अनुमोदित करती है, जो नहीं किया गया है।