बस्ती टू गोंडा का सफर तय कर रही हैं मां बेटी इंसाफ के बदले मिली तो सिर्फ तारीख पर तारीख…….?

 

रिपोर्ट
जेपी रावत/ मोहित तिवारी
गोंडा संदेश महल समाचार

कानून व्यवस्था की पोल खोलती ये खबर पूरे सिस्टम को सवालों के कटघरे में खड़ा करती हुई नजर आ रही है। यूं तो मामलों की एक लंबी फेहरिस्त अदालतों में लंबित है। वह भी न्याय की आस में आंखें गड़ाए हुए हैं, किंतु उन मामलों में भी मिलती है तो सिर्फ तारीख पर तारीख।आज बात करते हैं एक ऐसे मामले कि जिसमें एक नवविवाहित शादी के बंधन में बंध कर जिंदगी के एक ऐसे सफर को तय करने के लिए समाज के रस्मों रिवाज में बंधकर पिया के घर पहुंची किंतु वहां पर शादी के कुछ महीनों बाद ही असलियत से पर्दा उठ गया और हकीकत से विवाहिता को रूबरू होना पड़। और यही से शुरू हुआ वह सफर जहा पूरा जीवन बर्बाद हो कर रह गया। बताया जा रहा है कि मामले में पुलिस की मिली भगत के चलते इस विवाहिता की जिंदगी एक उपन्यास बनी जा रही है।

आरोपी पिता पुत्र

बताते चलें कि वर्ष 2019 की 2 मई को जनपद बस्ती के थाना परशुराम पुर अंतर्गत ग्राम गोपीनाथपुर निवासी इंद्रावती पत्नी मिश्रीलाल ने अपनी बेटी रेखा का विवाह
वजीरगंज थाना क्षेत्र के नगवा गाँव निवासी रवि सोनी पुत्र उमेश चन्द्र सोनी के साथ पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ कर बेटी की विदाई कर दिया।
परिजनों का आरोप है कि विवाह के कुछ महीनों बाद से विवाहिता अपने पति,सहित अन्य परिजनों पर दहेज उत्पीड़न के साथ साथ ससुर द्वारा आबरू के साथ खिलवाड़ किये जाने की शिकायत अपने परिजनों से किया, किंतु लोकराज के चलते यह भी मामला दवाने की पुर जोर कोशिश की गई। किन्तु विवाहिता ने उत्पीड़न और शारीरिक पोषण के विरुद्ध पहली शिकायत थाना वजीरगंज में 24/04/2020 को किया। न्याय न मिलने पर मामले की शिकायत महिला थाने में की वहां भी मामला ढाक के तीन पात जैसा सावित हुआ।
अहम पहलू यह है कि आज तक विवाहिता की शिकायत का ना तो गोंडा की पुलिस निस्तारण करा सकी और ना ही दहेज उत्पीड़न व अस्मिता के साथ खिलवाड़ किये जाने के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हो सका।
लगभग वर्षों से अधिक समय गुजरने के बाद हर शिकायत के बाद सुलह का प्रस्ताव विपक्षियों द्वारा दिया जाता रहा है,किन्तु हर वादे,हर प्रस्ताव की तारीख पर पुलिस विपक्षियों के इशारे पर सुलह समझौते की अगली तारीख तय करती चली आ रही है।
विपक्षियों के कुचक्रों का शिकार माँ बेटी दोनों लगभग ढाई सालों से बस्ती टू गोंडा का सफर तय करती आ रही हैं, किन्तु पुलिस आरोपियों के इशारे पर सुलह समझौते की हर बात देती है तो सिर्फ तारीख।
मामले से अजिज पीड़िता की माँ ने जिले के कप्तान से बेटी को इन्साफ दिलाने के लिए 13/12/2021 को शिकायती पत्र देकर गुहार लगाई। फिर वही खेल आरोपियों द्वारा सुलह का प्रस्ताव देकर मिली तो फिर अगली तारीख…………?

सरकारी मशीनरी महिलाओं के शिखर पर पहुंचने और विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों को गिनाकर गौरव का अनुभव करते हैं। सरकारें भी महिला अधिकारों के संरक्षण और उनके जागरुकता के लिये कार्यक्रम गिनाने में देर नहीं करती। गैर-सरकारी संगठन भी इन सरकारों के पीछे-पीछे महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा प्रस्तुत करते हैं।तथाकथित आधुनिकता की हवा में सांस लेती महिलाओं की फैशनपरस्ती से यह लगता है कि महिलाएं काफी आगे निकल चुकी हैं। महिलाएं, अब अबला नहीं रह गई हैं। यह एक भ्रम हो सकता है, सच्चाई नहीं।महिलाओं के प्रति बढ़ती बर्बरता और अत्याचार के किस्सों ने सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हम वाकई सभ्य समाज का हिस्सा हो चुके हैं। कुछ राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री के पदों पर आसीन हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी महिलाएं सेवाएँ दे रही हैं। शायद स्त्री विमर्श का सबसे बड़ा पहलू भी यही है कि इतने विविध और महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं के होने के बावजूद महिलाओं के उत्पीडन-प्रताडना के मामलों में गिरावट क्यों नहीं आई, इसका ग्राफ बढ़ता ही क्यों गया। घर से लेकर आफिस तक,आंगन से खेतों तक महिलाओं के उत्पीडन के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।महिलाएं अपने आप को असहज और असुरक्षित महसूस कर रही हैं।