रिपोर्ट/- रामकुमार मौर्य बाराबंकी संदेश महल
तीन वर्षों से देव स्थानों का भ्रमण कर रहे 65 वर्षीय केदारी दास बाबाजी समाचार विवरण के अनुसार आगरा केमसे लिया ग्राम निवासी बाबा केदारी दास अब तक 11 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन कर चुके हैं।
केवल केदारनाथ बाकी रह गया है। यह बाबाजी साइकिल से 3 वर्षों से धार्मिक स्थानों का भ्रमण कर रहे हैं। इसी दौरान श्री लोधेश्वर धाम पहुंच कर भगवान शिव जी का पूजन अर्चन किया और रात्रि विश्राम करने के बाद अयोध्या धाम के लिए रवाना हो गए। श्री बाबा जी ने बताया की मेरे घर में पूरा परिवार है ।लेकिन भगवान की कृपा से मैं साइकिल से 3 वर्ष बीत गए हैं धार्मिक स्थानों का दर्शन पूजन कर रहा हूॅ। आज हम भगवान शिव जी की नगरी लोधेश्वर धाम में पधारे हैं। यहां पर पहुंचकर सबसे पहले भगवान शिव जी का दर्शन पूजन किया ।हमको यहां पर बहुत अच्छा लगा। भगवान शिव की नगरी सबसे अच्छी नगरी है। जहां पर लाखों संख्या में शिव भक्त गण आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं ।मेरा भी सौभाग्य था कि मैं श्री लोधेश्वर धाम पहुंचकर भगवान शिव का पूजन अर्चन किया।
लोधेश्वर महात्म
लोधेश्वर महादेव सत्यम-शिवम-सुंदरम की अवधारणा को साकार करते द्वापर युग के इतिहास के साक्षी हैं। रामनगर क्षेत्र में अगहन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को लोधेश्वर महादेवा का प्राकट्य महापर्व माना जाता है। जनमानस अपने आराध्य, इष्टदेव के दर्शन-पूजन-अर्चन कर अपने कल्याण की कामना करता चला आ रहा है। पांडवों के अज्ञातवास के समय लोधेश्वर महादेव की स्थापना की बात कही जाती है।
अज्ञातवास के समय माता कुंती अपने पुत्रों के साथ घाघरा नदी के दक्षिण तटीय रेणुक वन में पहुंचे। जहां महामुनि वेद व्यास ने 12 वर्ष तक शिवार्चन, पूजन एवं महारुद्राभिषेक करने की सुमति दी। जिसके लिए माता कुंती के आदेश पर महाबली भीम बद्रीनाथ व केदारनाथ के पर्वतीय अंचल में गए और वहां से बहंगी में कंधे पर लादकर दो शिलाखंड लाए। लोधेश्वर महादेव की शिवस्थापना के संदर्भ में अवधी सम्राट महाकवि गुरुप्रसाद मृगेश के लोक महाकाव्य ग्रंथ पारिजात में विशद वर्णन है। लोक सम्मति के अनुसार भीम द्वारा लाए गए प्रथम शिलाखंड की स्थापना वर्तमान कितूर के पास माता कुंती ने की तथा द्वितीय पाषाण खंड को धर्मराज युधिष्ठिर ने गंडक घाघरा नदी के दक्षिण तटीय वन में स्थापित किया तथा 12 वर्ष तक रुद्र महायज्ञ किया तथा पास के कुरुक्षेत्र में हवन-यज्ञादि किया। कालांतर में घाघरा नदी के प्रवाह-परिवर्तन से यह शिव लिंग बालू-मिट्टी में विलीन हो गया। शिव विग्रह के संबंध में बताया जाता है कि कभी लोधेराम किसान को कृषि कार्य के समय यह शिव लिंग मिला था जिससे इसका नाम लोधेश्वर महादेव पड़ा। सिलौटा के बाबा बेनी सागर ने मंदिर का रूप दिया तथा रामनगर धमेड़ी राज्य के राजाओं ने चांदी कपाट व स्वर्णिम कलश से सुशोभित किया और राजा गरीब सिंह पुत्र जोरावर सिंह ने विशाल अभरन तालाब बनवाया। लोधेश्वर महादेवा में वर्ष में चार बड़े-बड़े मेला लगते हैं। जिसमें अगहनी मेला का विशेष महत्व है।