पीलीभीत में बाघ ही नहीं, नन्हीं गौरैया का भी हो रहा है संरक्षण

जेपी रावत
पीलीभीत जनपद बाघों की वंश वृद्धि व संरक्षण के लिए देश दुनिया में विख्यात है परंतु शायद कम लोगों को ही पता होगा कि विलुप्त हो रही नन्ही गौरैया के संरक्षण में भी यह जनपद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां के लोगों के छोटे प्रयासों से यह पक्षी पुनः छत की मुंडेर पर लौटने लगा है। लोग इसे नियमित दाना पानी दे रहे हैं और घरों में भी घोसला स्थापित किए गए हैं। देश दुनिया में गौरैया पक्षी विलुप्त सा होता जा रहा है। इसे संरक्षित करने के लिए विभिन्न अभियान भी चलाए जाते हैं परंतु फिर भी प्रतिकूल वातावरण के चलते गौरैया नहीं लौट पाती। पीलीभीत में लोग घरों में दाना पानी देकर व घोसले लगाकर इस पक्षी को संरक्षित कर रहे हैं। इसके चलते कई स्थानों पर गौरैया चहकती हुई नजर आई। कई जगह बच्चे भी इस नन्हे पक्षी के साथ कीड़ा करते नजर आए। घाटमपुर के लक्ष्मण प्रसाद वर्मा बताते हैं कि यह सुखद समाचार है कि गौरय्या, जो विलुप्त हो गई थी। अब पुनः वापस आ गई है। यह शुभ संकेत है। उनके घर पर लगभग 50 से ज्यादा गौरय्या हैं और सबके लिए घोंसला बना दिए हैं तथा दाना पानी भी नियमित देते हैं। इस कार्य में बच्चे व महिलाएं भी दिलचस्पी लेते हैं। पूरनपुर नगर की पंकज कॉलोनी में विपिन कुमार मिश्रा गौरैया के लिए नियमित पानी रखते हैं और दाना डालते हैं। उन्होंने कई घोसला भी स्थापित किए हैं। इसके चलते गौरैया की चहचहाहट सुबह-शाम सुनाई देने लगी है। उनके बच्चे भी इस नन्हें परिंदे के साथ खेलते हैं। वन्य जीव प्रेमी अख्तर मियां खां बताते हैं की गौरैया पीलीभीत में संरक्षित हो रही है और घोसला लगाने व नियमित दाना पानी देने से यह पक्षी विभिन्न स्थानों पर नजर आ रहा है। उन्होंने घोसले वितरित करके लोगों को प्रोत्साहित भी किया है। विलुप्त हो रही गौरैया को बचाने के लिए इन प्रयासों को काफी शुभ माना जा रहा है।