जयप्रकाश रावत
संदेश महल समाचार
जब हम ‘सरकारी स्कूल’ शब्द सुनते हैं, तो दिमाग में जो छवि उभरती है, वह अक्सर निराशाजनक होती है-टूटी दीवारें,अनुपस्थित शिक्षक,गंदगी से भरा परिसर और उदास बच्चे। लेकिन हर कहानी का एक दूसरा पहलू भी होता है, और उत्तर प्रदेश के जनपद बाराबंकी के सूरतगंज क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय पिपरी मोहार ने इस दूसरी कहानी को लिखकर दिखाया है। एक ऐसी कहानी, जो सिर्फ बदलाव की नहीं, बल्कि संकल्प, सेवा और समर्पण की है।वर्ष 2018 में जब विकास कुमार सिंह ने इस विद्यालय के इंचार्ज प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यभार संभाला,तब यह स्कूल भी अन्य सरकारी विद्यालयों की तरह ही गुमनामी और उपेक्षा का शिकार था। जर्जर भवन,अनुपस्थित बच्चे,साधनहीन कक्षाएं और उदास माहौल… लेकिन विकास कुमार ने इस हालात को नियति नहीं माना। उन्होंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया और कहा अगर इच्छा हो, तो साधन आ ही जाते हैं। मुझे बस बच्चों की आँखों में उजाला भरना है।विकास कुमार ने अपनी जिम्मेदारी को महज नौकरी नहीं,एक मिशन माना। उन्होंने सबसे पहले विद्यालय के भौतिक सुधार पर ध्यान दिया। उनके अथक प्रयासों और स्थानीय सहयोग से ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ योजना के अंतर्गत विद्यालय के भवन की मरम्मत, टाइल्स फ्लोरिंग,रंगीन कक्षाएं,और दीवारों पर चित्रकारी जैसे कार्य शुरू हुए। विद्यालय परिसर को सुंदर और प्रेरक बनाने के लिए चारों ओर पौधारोपण किया गया। अब स्कूल की चहारदीवारी न केवल सुरक्षा देती है, बल्कि उस पर लिखे प्रेरणादायक स्लोगन बच्चों को रोज़ प्रेरित करते हैं।इस परिवर्तन यात्रा में विकास कुमार अकेले नहीं थे। सहायक अध्यापक अनिल कुमार,लबली सिंह,शिक्षा मित्र कमरूद्दीन और मनोरमा,रसोइया अमरावती रामकला,शिवरानी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कंचन लता और सहायिका रमादेवी—हर किसी ने इस विद्यालय को संवारा। उनका उद्देश्य केवल काम पूरा करना नहीं था, बल्कि बच्चों के लिए एक ऐसा वातावरण बनाना था जहाँ वे खुद पर विश्वास कर सकें।
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा। बीईओ संजय कुमार,एआरपी संजय सिंह,अनूप चतुर्वेदी, भूपेंद्र प्रताप सिंह,पूर्व एआरपी अरविंद प्रताप सिंह व अजीत प्रताप सिंह सहित ग्राम प्रधान पवन कुमार और ग्राम विकास अधिकारी आशुतोष कुमार ने समय-समय पर आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की। यह सामूहिक प्रयास ही था जिसने विद्यालय की तस्वीर बदल दी।आज पिपरी मोहार विद्यालय पूरी तरह सीसीटीवी कैमरों से लैस है। हर गतिविधि पर निगरानी रखी जाती है, जिससे विद्यालय में अनुशासन और सुरक्षा का वातावरण बना है। कक्षाओं में पंखे, बेंच-टेबल, साफ-सुथरे शौचालय, हैंडवॉश यूनिट और दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं-यह सब किसी प्राइवेट स्कूल की सुविधाओं की याद दिलाते हैं।यहाँ तक कि बच्चों की पढ़ाई को रोचक और प्रभावी बनाने के लिए गणित गार्डन की स्थापना की गई है। बच्चे अब अंकों और आकृतियों को खेलते हुए समझते हैं,जिससे उनकी बुनियादी समझ में जबरदस्त सुधार आया है।विद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। स्कूल में लाइब्रेरी,खेल सामग्री (कैरम बोर्ड, फुटबॉल, वॉलीबॉल, शतरंज), और झूले बच्चों की सृजनात्मकता और मानसिक स्वास्थ्य को पोषित करते हैं।यहाँ समूह आधारित शिक्षण पद्धति अपनाई जाती है, जिससे हर बच्चे को उसकी क्षमता के अनुसार समझाया जाता है। मेधावी बच्चों को समय-समय पर सम्मानित भी किया जाता है,जिससे उनमें आत्मबल बढ़ता है।विद्यालय की नई छवि और शिक्षकों की मेहनत ने अभिभावकों के मन में गहरा विश्वास पैदा किया है। जहाँ पहले बच्चे स्कूल आने से कतराते थे, वहीं अब 110 बच्चों का पंजीकरण है। जिसमें 21 नवीन नामांकन शामिल हैं।और 95 प्रतिशत उपस्थिति-जो कि किसी भी सरकारी स्कूल के लिए गर्व की बात है।एक अभिभावक कहते हैं-“पहले हमें लगता था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाकर बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। लेकिन अब हम गर्व से कहते हैं कि हमारे बच्चे किसी कॉन्वेंट स्कूल से कम नहीं हैं।आज पिपरी मोहार विद्यालय सिर्फ एक स्कूल नहीं, बल्कि गाँव के विकास और आत्मविश्वास का केन्द्र बन गया है। बच्चे अब डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर बनने के सपने देखने लगे हैं। वे खुद को सीमित नहीं समझते, क्योंकि उन्होंने अपनी कक्षा को सुंदर, सुरक्षित और प्रेरणादायक देखा है।विद्यालय की दीवारें अब चुप नहीं, बोलती हैं-सपनों की, मेहनत की और बदलाव की भाषा। हर कोना कुछ कहता है। झूले बच्चों की हँसी में झूलते हैं, दीवारों की रंगत उनकी कल्पना में उतरती है, और गणित गार्डन उनके कौशल को आकार देता है।पिपरी मोहार विद्यालय ने यह साबित कर दिया कि बदलाव भवन से नहीं,भावना से आता है। अगर शिक्षक संकल्प ले लें, तो सरकारी विद्यालय भी शिक्षा के श्रेष्ठ केन्द्र बन सकते हैं। विकास कुमार सिंह और उनकी टीम ने यह करके दिखाया है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि सरकारी संसाधन की सीमा नहीं, सोच की ऊँचाई ज़रूरी होती है।इस विद्यालय की कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि समाज के उस हिस्से की है जो अब उठ खड़ा हुआ है—सपनों के साथ, समर्पण के साथ।पिपरी मोहार की यह प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि शिक्षा केवल किताबों में नहीं,अनुभव, उदाहरण और वातावरण में बसती है। और जब शिक्षा के साथ जुनून जुड़ जाए, तो कोई भी सरकारी स्कूल ‘कॉन्वेंट’ से कम नहीं रह जाता।किसी कवि ने ठीक ही कहा है-जो बदल दे सूरत मिट्टी की,वह शिक्षक ही होता है असली क्रांति की बुनियाद।