यूं तो मैं तन्हा तेरी यादों की कर्जदार हूंं -शीला वर्मा “मीरा”

रिपोर्ट
जेपी रावत
कार्यालय संदेश महल समाचार

लक्ष्य संस्था, उत्तर प्रदेश युवा छंद कार मंच एवं पंडित राम तिवारी आध्यात्मिक संस्थान द्वारा संयुक्त रुप से काव्य समारोह एवं सम्मान समारोह का आयोजन अवध कुंज पार्क, हजरतगंज लखनऊ में आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता ओज के सुप्रसिद्ध सिद्धहस्त हस्ताक्षर सिद्धेश्वर शुक्ल “क्रान्ति” जी ने की तथा मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ अजय प्रसून जी एवं व्यंगकार डॉक्टर सुभाष “गुरुदेव” जी, विशिष्ट अतिथि गीतकार संपत्ति कुमार मिश्र “भ्रमर बैसवारी” जी एवं विख्यात गज़लकार कुंवर
कुसुमेश थे। काव्य समारोह का सफल संचालन चिर परिचित युवा कवयित्री शिखा सिंह “प्रज्ञा” द्वारा किया गया।
काव्य समारोह का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा मां शारदे के चित्र पर माल्यार्पण तथा सुप्रसिद्ध वरिष्ठ छंदकार कविशरद कुमार पाण्डेय “शशांक” द्वारा सुमधुर वाणी वंदना द्वारा किया गया।

वाणी वंदना के पश्चात आठ साहित्यकारों को पंडित राम तेज तिवारी आध्यात्मिक संस्थान द्वारा अंग वस्त्र एवं प्रमाण पत्र एवं माल्यार्पण करके सम्मानित किया गया जिनके नाम इस प्रकार है :-

1. वीरपाल सिंह “निश्चल”
2. रमेश चन्द्र शर्मा
3. श्रीमती अलका अस्थाना
4. श्रीमती ऋचा मिश्रा “रोली”
5. मनमोहन बाराकोटी “तमाचा लखनवी”
6. अनिल “अनाड़ी”
7. सुश्री खुशबू पाण्डेय
8 सुश्री शिखा सिंह “प्रज्ञा”

तत्पश्चात युवा कवयित्री खुशबू पाण्डेय ने देशभक्ति से ओतप्रोत रचना पढ़कर कार्यक्रम को गति प्रदान की –
था ध्यॆय कभी चुका नहीं, संकल्प कभी टूटा नहीं
आजाद पॆ आजादी का आजाद रंग था यूं चढ़ा
मार गोली स्वयं को वह आजाद ही जग से गया।

कवि रमेश चंद्र जी ने नशे पर यह कविता पड़ी –
बुराई नहीं कोई पीने में
बुराई है पीकर बहकने में

इसके पश्चात प्रसिद्ध युवा गज़लकार सुश्री प्रिया सिंह ने यह गजल खूब सराही गई-
हार कर गर्दिश के चश्मे, तर ना होता आदमी।
तो समंदर मैं खड़ा गोहर ना होता आदमी।‌।

रायबरेली से पधारे जाने माने कवि दिलीप सिंह परमार ने अपने गीतों से कार्यक्रम में चेतना का नया संचार किया।

चिर परिचित कवयित्री शीला वर्मा “मीरा” की इस रचना ने सबका मन मोह लिया-
यूं तो मैं तन्हा तेरी यादों की कर्जदार हूं।
कुछ अदा कर दिया कुछ अदा करने को तैयार हूं।
चुभते कांटे बन तन-मन छलनी हो जाता है,
ढूंढ़ते फिरे हैं नयन दर्द सहने को तैयार हूं।

इसके पश्चात युवा कवि हर्ष पाण्डेय की इस सन्देशात्मक रचना ने सबका मन मोह लिया-
जिसे देना सहारा स्वयं उसका बल हो जाना।
प्रश्न होने से अच्छा है किसी का हल हो जाना।
क्षण भंगुर हो यह जीवन यहां पर नेह बांटो,
किसी से आज मिलना और उसका कल हो जाना।

प्रसिद्ध छंदकार मुकेश कुमार मिश्र ने यह कविता सुनाकर लोगों के दिलों को जीत लिया-
बड़े शक्तिशाली हुए हैं हथौड़े, बिना शक्ति के या कि‌ ताले हुए हैं।
बुराई कहीं भी बची ही नहीं है, बताते वही जो कि पाले हुए हैं।

हास्य कवि अनिल अनाड़ी ने जिंदगी हो गई झंडू बाम कविता सुनाकर लोगों को खूब हंसाया।
साथ में आज पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कटते हुए पेड़ों पर यह कविता सुनाई
चारों तरफ लगी है आग
कटे जा रहे हैं बाग पर बाग
पेड़ पौधों का हो रहा अंत
कहने को बस है बसंत

इसके पश्चात बलरामपुर से पधारी कवयित्री रिचा मिश्रा “रोली” के इस सुमधुर गीत ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया-
बीमार हो चुके हैं सनम हम तो प्यार के
इस रोग का इलाज कराया ना जाएगा
के साथी मेरे मितवा मुझे भूलना नहीं
अब और अपने दिल को रुलाया ना जाएगा।

वहीं बलरामपुर के युवा कवि देवेश मिश्रा “निर्मल” ने देशभक्ति पर अपनी यह कविता पढ़कर चेतना का नया संचार किया-
कोई देशद्रोह करें कोई विद्रोह करें
वतन की रक्षा करो खींच लो मैं प्राण को
भगत, आजाद बनूं किसी से भी ना डरु किसी से भी ना डरु
कभी न सह पाऊ, राष्ट्र अपमान को

सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कवयित्री गज़लकार श्रीमती रेनू वर्मा “रेणु” के इस सृजन ने खूब तालियां बटोरते हुए ढेर सारी प्रशंसा बटोरीं-
हो लक्ष्य पर जिनकी निगाहें
ठोकरे खुद मीत बन जाती।

काव्य समारोह का सफल संचालन कर रहीं युवा कवयित्री सुश्री शिखा सिंह “प्रज्ञा” ने यह गीत सुनाकर लोगों की वाहवाही लूटी-
हाय इज्जत तेरा गहना तो क्या कहना
बिना इज्जत भी इस दुनिया में क्या रहना
ना तोड़ा हो तुमने कभी रिवाजों को
तो जहन शर्मिंदगी भी यार क्या सहना।

सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कवि दोहा सम्राट केवल प्रसाद “सत्यम” ने वर्तमान परिवेश पर यथार्थपरक दोहे पढ़कर ढेर सारी तालियां एवं दाद बटोरीं-
सत्यम सस्ते हो गए, महंगे सारे झूठ।
जब से भ्रष्टाचार के, हाथ प्रगट की मूंठ।।

गीतकार श्रीमती अलका अस्थाना ने अपने इस गीत से लोगों में जोश भर दिया-
शब्द शब्द देखो थर्राने लगे हैं
नयन भर भर के बरसने लगे हैं
धरती भी देखो अब रोने लगी
पुनः रक्त देख दुलाराने लगी है।

हास्य कवि गोबर गणेश ने यह कविता सुनाकर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया-
जिन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया
उनको हम महान बता रहे हैं
अशफाक उल्ला, भगत सिंह, शेखर आजाद कौन थे
इस प्रश्न का उत्तर लोग नहीं बता पा रहे हैं
आजादी हम यूं मना रहे हैं
सलमान कटरीना को हीरो बता रहे हैं।

जाने माने कवि सतीश चन्द्र श्रीवास्तव “शजर” के गीत एवं दोहे खूब सराहे गये-
तुलसी सेवक राम के, निस दिन
जपते राम।
जो तुलसी तुलसी रटे, उनका मन पावन धाम।

भोजपुरी एवं हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि कृष्णानंद राय ने चंद्रशेखर आजाद पर यह कविता सुनाकर लोगों में जोश भर दिया-
मूछ ताने चंद्रशेखर वीरता प्रमाण लिए,
ऐसी देशभक्ति जन्म-जन्म जगाना है।
देश की रक्षा में बच्चा बच्चा लग जाय,
भारत माता की जय जय कार लगाना है।

वरिष्ठ कवि रामराज भारती “फतेहपुरी” ने अपने दोहों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

तत्पश्चात कवि व्यंग्यकार मनमोहन बाराकोटी “तमाचा लखनवी” ने अपने सन्देशपरक व्यंग्यात्मक दोहे एवं मुक्तक पढ़ते हुए कार्यक्रम को गति प्रदान की-
पीकर जो हैं बहकते वो, तड़ी-कायर होते हैं।
मजबूती से कहते जो, कवि-शायर होते हैं।।
देशद्रोहियों की कमी नहीं, यहाँ है दोस्तों,
गुलामी की बात करे जो, खूनी-डायर होते हैं।।

वाणी वंदना कर चुके सुप्रसिद्ध छंदकार शरद कुमार पाण्डेय “शशांक” को जब कविता पाठ के लिए बुलाया गया, तो उन्होंने उग्रवाद पर यह कविता सुनाई-
सूर तुलसी तथा कबीर सा मिला ना ज्ञान ।
देके वरदान हरियॆ सभी निषाद को।
अब तक आई तम तम को भगाने जाने
आज चलिए आइए मिटाने उग्रवाद को।

गीतकार कन्हैयालाल ने जीवन के यथार्थ पर यह कविता पढ़ी-
जो सुख‌‌ क्षीण करें सुख को
क्षण भंगुर वह सुख मोह ना भावे

विशिष्ट अतिथि गीतकार संपत्ति कुमार “भ्रमर बैसवारी” ने बेटियों पर कविता सुना कर लोगों को चेतना जागृत की।

विशिष्ट अतिथि डॉक्टर सुभाष गुरुदेव ने यह कविता सुनाएं
अपने-अपने मन मंदिर के अंदर
झांक झांक कर फिर भी देखो
क्या-क्या खोया क्या क्या पाया।
प्रसिद्ध गज़लकार कुंवर कुसुमेश की तरन्नुम में इस बेहतरीन ग़ज़ल ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिया-
समझता नहीं खुद के आगे किसी को,
यह क्या हो गया आजकल आदमी को ।

सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ अजय प्रसून के सुमधुर गीत एवं दोहों ने ढेर सारी तालियां बटोरीं-
घर-घर में हम देखते होते रोज विवाद,
कारण इसका क्रोध में लोग डालते खाद !

ओज कवि सिद्धेश्वर शुक्ला “क्रान्ति” ने –
वो शून्य निहारा करती, करती रहती थी मंथन ।
कब क्रान्ति करेगा मानव,
तोड़ेगा सारे बंधन।।
इतिहास लिखेगा अपना, नवयुग की बीन बजेगी,
कब अन्धकार रोयेगा, कब पृथ्वी स्वर्ग बनेगी।।

काव्यगोष्ठी के अन्त में संस्था के सचिव प्रवीण कुमार शुक्ला “गोबर गणेश” ने सभी अतिथियों कवियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।