हर्ष पर्वत पर विराजित है एक हजार साल पुरानी प्राचीन पंचमुखी शिव की प्रतिमा

संदेश महल समाचार
सीकर के हर्ष पर्वत पर विराजित है एक हजार साल पुरानी प्राचीन पंचमुखी शिव की प्रतिमा चौहान वंश के राजा सिंहराज के समय बने प्राचीन मंदिर को औरंगजेब की सेना ने किया था खंडित, सीकर के राव राजा शिव सिंह ने प्राचीन मंदिर के नजदीक बनाया था नया शिव मंदिर, नए मंदिर में बना है संगमरमर अनूठा शिवलिंग सावन के महीने में हर्ष पर्वत पर भगवान शंकर की आराधना और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु सावन का महीना शुरू होने के साथ ही शिवालियों में बाबा भोले शंकर की विशेष आराधना और पूजा अर्चना का महीना शुरू हो गया है। अब एक महीने तक शिवालयों में पूरे दिन जलाभिषेक और रुद्राभिषेक सहित अनेक धार्मिक आयोजन के साथ ही शिवालय बोल बम ताड़क बम के जय घोष से मंदिर गुंजायमान रहेंगे। बाबा भोले के श्रद्धालु अनेक धार्मिक स्थल के सरोवर से कावड़ में जल भरकर भगवान शंकर का अभिषेक भी करेंगे। सावन के इसी पुण्य महीने में बाबा भोले की आराधना से श्रद्धालु भगवान शंकर की पूजा अर्चना कर भोले बाबा को रिझाने और अपनी मनोकामना पूरी करने की मन्नत मांगेंगे। वहीं अगर बात करें सीकर जिले की तो सीकर जिले में भी अनेक नए व प्राचीन शिवालय है जहां पर सावन के महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शंकर की आराधना करने के लिए पहुंचते हैं। ऐसा ही करीब 1052 साल पुराना प्राचीन शिव मंदिर सीकर जिले के पर्यटन स्थल हर्ष पर्वत पर है, जहां पंचमुखी शिव की दुर्लभ मूर्ति व संभवतः प्रदेश की सबसे प्राचीन शिव प्रतिमा है। जहां साल भर देश-प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक मंदिर देखने और भगवान शंकर के सामने शीश नवाने के लिए पहुंचते हैं। सावन के महीने में तो श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में भी काफी इजाफा हो जाता है। इतिहासकारों और मंदिर पुजारी का मानना है कि हर्ष पर्वत पर बने प्राचीन शिव मंदिर के निर्माण कार्य की नींव चौहान वंश के राजा सिंहराज ने विक्रम संवत 1018 में रखी थी। इसके निर्माण में करीब 12 साल लगे थे। जिसके बाद संवत 2030 में प्राचीन शिव मंदिर का लोकार्पण किया गया था। प्राचीन शिव मंदिर में एक विशाल दीपक जलता था जिसे जंजीरों व चरखी से ऊपर चढ़ाया जाता था। जिसका प्रकाश भी सैकड़ो किलोमीटर दूर से ही देखा जा सकता था। प्राचीन मंदिर पर दिल्ली सल्तनत के शासक औरंगजेब ने खंडेला अभियान के दौरान 1739 में आक्रमण कर यहां के मंदिर और प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था। जिसके अवशेष आज भी हर्ष पर्वत पर बने प्राचीन शिव मंदिर में देखे जा सकते हैं। औरंगजेब की सेवा द्वारा प्राचीन शिव मंदिर को खंडित करने के बाद सीकर के राव राजा शिव सिंह ने संवत 1781 में हर्ष पर्वत पर दूसरा शिव मंदिर बनवाया था। जो प्राचीन मंदिर के नजदीक ही काशी विशाल रूप में बना हुआ है। औरंगज़ेब की सेवा द्वारा तोड़े गए हर्षनाथ के प्राचीन मंदिर की खास बात इसकी बनावट भी है। मंदिर परिसर में स्तंभों पर बेल-बूटीं वाली नकाशी की गई है। इसके साथ ही मंदिर में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति के अलावा विष्णु, शिव शक्ति, गणेश, इंद्र, कुबेर, नर्तकी व योद्धाओं और सामान्य सैनिकों सहित अप्सराओं व दासियों के अलावा 84 प्रकार के दृश्य की कलात्मक प्रतिमा भी उकेरी की गई है। जो वर्तमान में कई सही सलामत व कई खंडित अवस्था में मंदिर परिसर में देखी जा सकती है। जिन्हें देखने के लिए साल भर में लाखों पर्यटक और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर पुजारी परिवार का कहना है कि चौहान वंश के राजाओं ने प्राचीन मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद औरंगजेब की सेना ने प्राचीन मंदिर को खंडित कर दिया था। इसके बाद सीकर के राव राजा शिव सिंह ने प्राचीन मंदिर के पास ही भगवान शिव के नए मंदिर का निर्माण करवाया था। जहां पर एक विशाल सफेद संगमरमर का शिवलिंग बना हुआ है। इस शिवलिंग की विशेष बात यह है कि इसके नीचे का जो भाग है वह चौकोर आकार में बनाया गया है, जो संभवतः पूरे देश व प्रदेश में एकमात्र यहां पर ही बना हुआ है। पुजारी ने बताया कि हम अधिकतर देखते हैं कि शिवलिंग के नीचे का भाग गोल आकर में बनाया हुआ होता है, लेकिन हर्षनाथ पर्वत पर स्थित शिव मंदिर में नीचे का भाग चौकोर आकार में बनाया गया है जो अपने आप में अनूठा है। हर्ष पर्वत शेखावाटी का बड़ा पर्यटन का केंद्र भी माना जाता है। जहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देश व प्रदेश से पर्यटक और श्रद्धालु पहुंचते हैं। सावन के महीने में तो पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या भी काफी बढ़ जाती है। हर्ष पर्वत पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर में भगवान भोले की आराधना और पूजा का अर्चना करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इसके साथ ही धार्मिक स्थल लोहार्गल, हरिद्वार सहित अन्य स्थानों से भी सरोवर से पवित्र जल भरकर कावड़िये भगवान शंकर का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करते हैं। यह सिलसिला पूरे सावन महीने में अनवरत जारी रहता है। हर्ष पर्वत पर स्थित शिव मंदिर के बाहर एक नंदी की प्रतिमा भी बनाई गई है। कहा जाता है कि नदी के कान में अपनी मनोकामना बताने पर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। वही शिव मंदिर के पास प्राचीन हर्ष भैरवनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। कहा जाता है कि हर्ष भैरव अरावली की पर्वतमाला में विराजित मां जीण भवानी के भाई है, जो अपनी रूठी हुई बहन जीण को मनाने के लिए यहां आए थे लेकिन जब उनकी बहन जीण घर जाने के लिए तैयार नहीं हुई तो हर्ष भैरव भी जीण माता की पहाड़ियों के नजदीक की पहाड़ी पर शिव की आराधना करने के लिए बैठ गए थे। इसके बाद से ही इस पहाड़ी को हर्ष भैरव पर्वत के नाम से जाना जाता है। वही हर्ष पर्वत पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर में दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने भी कहा कि हर्ष पर्वत के प्राचीन मंदिरों और इसके इतिहास के बारे में काफी कुछ सुना था, जिसे आज देखने और इतिहास को जानने के लिए प्राचीन शिव मंदिर में पहुंचे हैं। भगवान शिव के मंदिर में पहुंचकर मनोकामना भी मांगी है तो वही प्राचीन मंदिर में की गई नकाशी और पुराने कलाकारों के हुनर को देखने का मौका मिला है। यहां पर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक प्रतिमाएं है, जिनमें से कई प्रतिमाएं औरंगजेब के आक्रमण के समय खंडित की हुई भी रखी है। इससे सनातन धर्म और प्राचीन इतिहास को जानने का अवसर मिलता है। हर्ष पर्वत राजस्थान और सीकर जिले का बड़ा पर्यटक स्थल है, इसलिए सरकार और प्रशासन को भी यहां की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना चाहिए ताकि यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सके।

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