जयप्रकाश रावत
बाराबंकी संदेश महल समाचार
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के सूरतगंज विकासखंड में बसा एक छोटा सा गांव पूरनपुर, आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। कारण है – वहां का पूर्व माध्यमिक विद्यालय, जो आज न सिर्फ एक स्कूल है, बल्कि उम्मीदों का वह केंद्र बन चुका है, जहां शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रही, बल्कि जीवन के हर पहलू को सँवारने वाली रोशनी बन चुकी है।
सरकारी स्कूलों को लेकर आम धारणा यही रही है कि वहां अव्यवस्था होती है, पढ़ाई कमजोर होती है, और शिक्षा का स्तर बहुत पीछे रहता है। लेकिन जब आप पूरनपुर के इस विद्यालय में कदम रखते हैं, तो यह सारी धारणाएं टूट जाती हैं। यह स्कूल आज एक मिसाल है – उन सभी संस्थानों के लिए जो बदलाव की राह पर चलना चाहते हैं।स्कूल की मुख्य फाटक से प्रवेश करते ही एक हरियाली से भरा-भरा वातावरण आपका स्वागत करता है। फुलवारी में खिले फूल, स्वच्छ परिसर, दीवारों पर रंग-बिरंगे शैक्षिक चित्र और प्रेरक नारों से सजी बाउंड्री वॉल देखकर एक पल को विश्वास नहीं होता कि यह कोई ग्रामीण क्षेत्र का सरकारी स्कूल है।छात्र-छात्राएं एक जैसी साफ-सुथरी यूनिफॉर्म में, बेंच-डेस्क पर बैठकर मनोयोग से पढ़ाई में लगे होते हैं। कक्षा के भीतर का वातावरण शांत,अनुशासित और सीखने के लिए अनुकूल है।और इन सबके पीछे जो नेतृत्व है, वो हैं। प्रधानाध्यापक रामनरेश मौर्य, जिनकी दूरदर्शिता, प्रतिबद्धता और सेवा भावना ने इस विद्यालय की सूरत और सीरत दोनों बदल दी है।विद्यालय केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं है। यहां के शिक्षक बच्चों को जीवन मूल्यों,अनुशासन,स्वच्छता और सामाजिक जिम्मेदारियों से भी परिचित कराते हैं। विद्यालय की सुबह प्रार्थना सभा से होती है, जिसमें नैतिक शिक्षा, समूह गान और ‘आज का विचार’ जैसे कार्यक्रम नियमित चलते हैं।सहायक शिक्षिका सितारा देवी और अनुदेशिका सरोज कुमारी इस परिवर्तन यात्रा की अहम सिपाही हैं। वे न केवल बच्चों को पढ़ाने में रुचि रखती हैं, बल्कि बच्चों के साथ एक अभिभावक की तरह जुड़ती हैं। यही कारण है कि विद्यालय में विद्यार्थी भी अपने शिक्षकों का अत्यंत सम्मान करते हैं।
विद्यालय की हर दीवार बोलती है- कहीं गणित के सूत्र हैं, तो कहीं विज्ञान के चित्र। एक दीवार पर देशभक्ति की पंक्तियाँ हैं, तो दूसरी ओर सामाजिक संदेशों से प्रेरित रंगीन चित्रकारी। यह सब न सिर्फ विद्यालय को सुंदर बनाता है, बल्कि बच्चों की सोच और रचनात्मकता को भी विस्तार देता है।विद्यालय के हर कोने को शिक्षा से जोड़ा गया है -जैसे बाउंड्री वॉल पर अक्षर ज्ञान, वर्ग पहाड़े, विज्ञान के चित्र और विभिन्न त्योहारों की जानकारी भी दी गई है। यह ‘दीवारें भी सिखाती हैं’ की सच्ची मिसाल है।प्रधानाध्यापक रामनरेश मौर्य बताते हैं, “हमें जो भी संसाधन विभाग से प्राप्त होते हैं, उनका पूरा उपयोग हमने पारदर्शिता और समर्पण से किया। जरूरत पड़ी तो स्थानीय ग्रामीणों और ग्राम प्रधान से सहयोग मांगा। हमारा उद्देश्य था -बच्चों को ऐसा वातावरण देना जो उन्हें आत्मविश्वासी बनाए।विद्यालय में मध्याह्न भोजन के लिए साफ-सुथरा रसोईघर है, जहां पौष्टिक भोजन तैयार किया जाता है। बच्चों को ड्रेस, जूते-मोजे, किताबें और बैग समय से उपलब्ध कराए जाते हैं। आज यहां कुल 194 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। यह बदलाव दर्शाता है कि जब स्कूल में विश्वास पैदा होता है, तो पूरा समाज उसका हिस्सा बनता है।विद्यालय में अब ब्लैकबोर्ड के साथ-साथ डिजिटल लर्निंग के प्रयास भी शुरू हो चुके हैं। शिक्षक यूट्यूब और एजुकेशनल ऐप्स के माध्यम से बच्चों को नयी चीजें सिखाते हैं। बच्चों के प्रोजेक्ट वर्क, पेंटिंग और कविता लेखन जैसी गतिविधियाँ भी विद्यालय की नियमित दिनचर्या का हिस्सा हैं।
अभिभावकों को भी विद्यालय की प्रगति से जोड़ा गया है। समय-समय पर अभिभावक शिक्षक बैठकें होती हैं, जिनमें बच्चों की प्रगति पर चर्चा की जाती है। यही साझेदारी विद्यालय को और भी मजबूत बनाती है।पूरनपुर के इस विद्यालय की कहानी यह सिद्ध करती है कि शिक्षक केवल अध्यापक नहीं होते -वे समाज के निर्माता होते हैं। वे खुद को अंधेरे में रखकर विद्यार्थियों के जीवन को रोशन करते हैं। इस विद्यालय के शिक्षक इस कहावत को जी रहे हैं – “एक शिक्षक सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाता, वह भविष्य गढ़ता है।पूर्व माध्यमिक विद्यालय पूरनपुर अब केवल एक स्कूल नहीं, बल्कि एक आदर्श मॉडल बन चुका है। यह विद्यालय यह दर्शाता है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो कोई भी सरकारी विद्यालय गुणवत्ता की मिसाल बन सकता है। यहां का हर शिक्षक, हर बच्चा और हर दीवार एक बदलाव की कहानी कहती है।यह विद्यालय शिक्षा विभाग, जिला प्रशासन और समाज के लिए एक प्रेरणा है। अगर ऐसे ही प्रयास अन्य स्कूलों में भी दोहराए जाएँ,तो वो दिन दूर नहीं जब ‘सरकारी स्कूल’ शब्द गर्व का प्रतीक बन जाएगा।