जयप्रकाश रावत
संदेश महल समाचार
सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की घटती संख्या को अक्सर शिक्षकों की उपस्थिति, पढ़ाई की गुणवत्ता, या अभिभावकों की अपेक्षाओं से जोड़ा जाता है। लेकिन एक गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि मानक विहीन निजी स्कूलों को दी गई स्वीकृति भी इस संकट का एक बड़ा कारण बन चुकी है।
विगत वर्षों में बड़ी संख्या में ऐसे निजी विद्यालय उभरे हैं, जिन्हें बिना आवश्यक भौतिक और शैक्षणिक संसाधनों के भी मान्यता प्रदान कर दी गई। इन स्कूलों के पास न तो उपयुक्त भवन हैं, न ही शौचालय, पीने का पानी, पुस्तकालय या खेल सामग्री जैसी बुनियादी सुविधाएं। अधिकांश स्कूलों में प्रशिक्षित और स्थायी शिक्षक भी नहीं हैं। इसके बावजूद, ये विद्यालय अंग्रेज़ी माध्यम, स्मार्ट क्लास, और अनुशासन जैसी सतही विशेषताओं के नाम पर अभिभावकों को आकर्षित करते हैं।
अभिभावकों की यह सामाजिक प्रवृत्ति बन चुकी है कि वे प्राइवेट स्कूल को सरकारी स्कूल की तुलना में श्रेष्ठ मानते हैं, भले ही वहाँ शिक्षा का स्तर कमजोर हो। यह धारणा बाज़ार की उस प्रवृत्ति से जन्मी है जिसमें गुणवत्ता की जगह ‘ब्रांड’ को महत्व मिलता है। परिणामस्वरूप, सरकारी स्कूल जिनमें मिड डे मील, निशुल्क किताबें, यूनिफॉर्म, योग्य शिक्षक और नियमित निरीक्षण की व्यवस्था है, उनका नामांकन लगातार घटता जा रहा है।
दूसरी ओर, शिक्षा विभाग द्वारा निजी स्कूलों की स्वीकृति के मानकों की सख्ती से अनदेखी की गई है। मान्यता के लिए आवश्यक बिंदुओं की औपचारिक जांच अक्सर कागजों तक सीमित रह जाती है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब एक ही गांव या क्षेत्र में चार–पांच सब-स्टैंडर्ड निजी स्कूल खुल जाते हैं, तो वे न केवल छात्रों को बाँट देते हैं बल्कि सरकारी स्कूलों की साख को भी प्रभावित करते हैं।
स्थिति यह हो गई है कि कमजोर निजी स्कूल सरकारी शिक्षा व्यवस्था को चुनौती देने लगे हैं, जबकि उनके पास न संसाधन हैं, न दीर्घकालिक स्थायित्व। यह एक प्रकार से शिक्षा का वाणिज्यीकरण है जिसमें गुणवत्ता से अधिक बाह्य आडंबर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण और संतुलन आवश्यक है। यदि निजी स्कूलों की मान्यता के मानकों को कठोर नहीं किया गया और सरकारी स्कूलों की उपयोगिता को पुनः प्रतिष्ठित नहीं किया गया, तो प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था एक ओर व्यावसायीकरण की ओर और दूसरी ओर सामाजिक विभाजन की ओर बढ़ती चली जाएगी।