पुलिस हिरासत में दलित वारंटी की संदिग्ध मौत से मचा हड़कंप

संतकबीरनगर, संवाददाता संदेश महल
महुली थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम नगुआ में उस समय हड़कंप मच गया जब 14 साल पुराने मारपीट के एक मामले में वारंटी बनाए गए दलित युवक की पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। मृतक राम किशुन के परिजन शनिचरा बाबू चौकी पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए शव का पोस्टमार्टम कराने से साफ इनकार कर रहे हैं।

परिजनों का आरोप – बीमार होने के बावजूद जबरन खींच कर ले गई पुलिस

परिजनों ने बताया कि मृतक राम किशुन को हृदय संबंधी बीमारी थी। सोमवार शाम को गांव निवासी दूसरे वारंटी मतई पुत्र मोतीलाल और राम किशुन को पुलिस द्वारा चौकी आने का निर्देश दिया गया था। लेकिन मंगलवार सुबह करीब आठ बजे जब चौकी प्रभारी दो सिपाहियों के साथ राम किशुन के घर पहुंचे तो स्थिति भयावह हो गई।

परिजनों के मुताबिक, राम किशुन उस वक्त खाना खा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उनकी पत्नी को धक्का देकर घर में घुसते हुए राम किशुन को जबरिया उठाकर बाइक पर बैठा लिया और चौकी ले गई। बीमार राम किशुन को दवा देने तक का वक्त नहीं दिया गया।

चौकी में बिगड़ी तबीयत, प्राइवेट डॉक्टर ने घोषित किया मृत

साथ ले जाए गए वारंटी मतई का कहना है कि चौकी पहुंचते ही राम किशुन की तबीयत और बिगड़ गई। तब पुलिस उन्हें नजदीकी एक प्राइवेट डॉक्टर के क्लिनिक पर लेकर गई, जहां चिकित्सक ने राम किशुन को मृत घोषित कर दिया।

आश्चर्यजनक रूप से पुलिस मृतक का शव वहीं छोड़कर चौकी लौट गई। बाद में ग्रामीणों ने शव को राम किशुन के घर पहुंचाया।

बेटों के आने तक पोस्टमार्टम से इनकार

घटना की खबर मिलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। सीओ प्रियम शेखर पांडेय और थानाध्यक्ष रजनीश राय मौके पर पहुंचे और शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए परिजनों को समझाने का प्रयास करने लगे। लेकिन मृतक की पत्नी और पुत्री ने दिल्ली में रह रहे चारों बेटों के पहुंचने तक शव न देने की जिद पकड़ ली।
अपर पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार सिंह भी मौके पर पहुंचे और समझाने की कोशिश की, लेकिन समाचार लिखे जाने तक परिजन शव देने से इनकार कर रहे थे।

14 साल पुराना मामला बना मौत की वजह?

गांव के लोगों के मुताबिक, वर्ष 2011 में दो पक्षों के बीच हुई मारपीट के मामले में कुल 5 लोगों के खिलाफ वारंट जारी हुआ था। जिसमें से तीन आरोपी गांव से बाहर थे जबकि राम किशुन और मतई गांव में ही थे। पुलिस इन्हीं दो लोगों को हिरासत में लेने आई थी।

नगुआ गांव बना पुलिस छावनी

घटना की खबर जैसे ही फैली, आसपास के गांवों के लोग भारी संख्या में मृतक के घर इकट्ठा होने लगे। स्थिति बिगड़ने की आशंका में महुली और धनघटा थाने की पुलिस को गांव में तैनात कर दिया गया। फिलहाल नगुआ गांव पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है।

प्रशासन पर गंभीर सवाल

इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं बल्कि दलित समुदाय की सुरक्षा और संवेदनशीलता पर भी नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या बीमार व्यक्ति को जबरन उठाकर ले जाना आवश्यक था? क्या मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ?
अब देखना यह है कि प्रशासन इस घटना की निष्पक्ष जांच कराता है या फिर यह भी एक सामान्य आंकड़ा बनकर रह जाएगा।

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