रामनगर बाराबंकी संदेश महल
शासन-प्रशासन की शिथिल होती व्यवस्था और ज़मीनी स्तर पर लचर निगरानी के चलते सरकारी स्कूलों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। एक ओर जहां सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है, वहीं दूसरी ओर बिना मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों की चांदी कट रही है।
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कई स्कूल भी बच्चों की संख्या बढ़ाने में असफल हो रहे हैं। इसके उलट, दर्जनों अवैध और बिना मान्यता वाले स्कूल न केवल खुलेआम संचालित हो रहे हैं, बल्कि तेजी से बच्चों की संख्या भी बढ़ा रहे हैं। इन विद्यालयों के संचालक घर-घर जाकर अभिभावकों को बहकावने वाले प्रलोभन देकर बच्चों का नामांकन करवा रहे हैं।
भारी फीस और मोटा कमीशन
बिना मान्यता प्राप्त इन विद्यालयों में फीस की कोई सीमा नहीं है। अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली जाती है और पुस्तक विक्रेताओं से मोटा कमीशन पहले से तय होता है। इन स्कूलों में उपयोग होने वाली कॉपी-किताबें इतनी महंगी होती हैं कि केवल शिक्षा के नाम पर एक पूरा आर्थिक शोषण तंत्र खड़ा कर दिया गया है। स्कूल संचालक और संबंधित दुकानें अच्छी-खासी कमाई कर रही हैं।
सरकारी सुविधाएं व्यर्थ जातीं
सरकारी स्कूलों में जहां छात्रों को मुफ़्त पाठ्यपुस्तकें, यूनिफॉर्म और मध्याह्न भोजन जैसी सुविधाएं दी जाती हैं, वहीं वहां बच्चों की उपस्थिति चिंताजनक रूप से कम है। सरकार द्वारा तय नामांकन मानक कभी पूरे नहीं हो पाते। शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देश और योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई हैं।
जिम्मेदार अधिकारी चुप
ब्लॉक स्तर पर तैनात अधिकारी इस स्थिति से पूरी तरह वाकिफ़ हैं, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। जब भी जांच के आदेश आते हैं, अधिकारियों की मिलीभगत से बिना मान्यता विद्यालयों को पहले ही सूचना मिल जाती है और जांच महज औपचारिकता बनकर रह जाती है। इन स्कूलों के प्रबंधकों को पता होता है कि जांचकर्ताओं को कैसे मैनेज करना है।
जरूरत है कठोर कार्रवाई की
अगर समय रहते बिना मान्यता विद्यालयों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो सरकारी शिक्षा प्रणाली पूरी तरह चरमरा जाएगी। सरकार को चाहिए कि वह सिर्फ दिशा-निर्देश जारी करने की बजाय, ज़मीनी स्तर पर सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करे और दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करे।