तिरंगे की छांव में नई पीढ़ी का संकल्प- पूर्व माध्यमिक विद्यालय पूरनपुर

सूरतगंज बाराबंकी संदेश महल समाचार
पूरनपुर सूरतगंज की सुबह आज किसी त्यौहार से कम नहीं थी। गांव की पगडंडियों पर, कच्ची सड़कों पर, बच्चों के हाथों में लहराता तिरंगा सिर्फ कपड़े का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि एक जीता-जागता वचन था — हम इस मिट्टी से प्यार करते हैं, और इसे सदा गर्व से सिर पर रखेंगे।

प्रधानाचार्य रामनरेश मौर्य, सहायक अध्यापक सितारा देवी और शिक्षा मित्र सरोज कुमारी के नेतृत्व में निकली यह तिरंगा यात्रा, एक विद्यालय की परंपरा भर नहीं, बल्कि राष्ट्रचेतना की मशाल थी। छोटे-छोटे क़दमों की पदचाप में जो लय थी, वह हमें 1857 के रणघोष, आज़ादी की हुंकार और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की गूंज याद दिला रही थी।

आज का भारत न सिर्फ विकास के पथ पर अग्रसर है, बल्कि अनेक चुनौतियों का सामना भी कर रहा है — सामाजिक विभाजन, सांस्कृतिक क्षरण और नैतिक शिथिलता इनमें प्रमुख हैं। ऐसे में यह दृश्य, जब मासूम आंखों में तिरंगे की चमक और होंठों पर देशभक्ति के नारे हों, हमें आश्वस्त करता है कि हमारी नई पीढ़ी सही दिशा में बढ़ रही है।

तिरंगा यात्रा जैसे आयोजन हमें यह याद दिलाते हैं कि स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस कोई औपचारिक रस्में नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति हमारे संकल्प को ताज़ा करने के अवसर हैं। सवाल यह है कि क्या हम इन आयोजनों के संदेश को अपने जीवन में उतार पा रहे हैं? क्या तिरंगा केवल उत्सव के दिन हमारे घरों और स्कूलों में लहराता है, या हमारे आचरण, विचार और चरित्र में भी उसका स्थान है?

पूरनपुर के बच्चों ने आज जो उदाहरण पेश किया, वह हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति केवल भाषणों में नहीं, बल्कि कर्म में दिखनी चाहिए। तिरंगे का सम्मान तभी होगा, जब हम उसके तीन रंगों के अर्थ — साहस, शांति और विकास — को अपने जीवन में जिएं।

पूरनपुर की यह तिरंगा यात्रा एक सवाल छोड़ जाती है — क्या हम अपनी अगली पीढ़ी को सिर्फ़ इतिहास पढ़ा रहे हैं, या उन्हें इतिहास बनाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं?

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