वन विभाग की लापरवाही से नौबस्ता में उजड़े हरित क्षेत्र

जयप्रकाश रावत
बाराबंकी संदेश महल समाचार
जिलाधिकारी के आदेशानुसार 8 अप्रैल से 8 मई तक वन प्रवेक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत जिले में वन संरक्षण और हरित क्षेत्र के संरक्षण हेतु पेड़ कटान पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया गया है। इसके बावजूद वन क्षेत्र फतेहपुर अंतर्गत ग्राम नौबस्ता, मजरा बैरानामऊ मंझारी में वन संरक्षण नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए 3 शीशम, 1 नीम, 1 गुलर और 1 अर्जुन के वृक्ष काटे जाने की सूचना सामने आई है।जिसको लेकर संदेश महल ने “नौबस्ता गांव में ठेकेदारों ने प्रतिबंधित पेड़ों पर चलाया आरा” नामक शीर्षक के साथ प्रमुखता से समाचार प्रकाशित कर प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया था लेकिन संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते कार्यवाही शून्य रही। गौरतलब हो कि
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि संबंधित विभाग को अवैध कटान की जानकारी होने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इससे क्षेत्र में वन संरक्षण कार्यक्रम की गंभीरता पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। प्रशासनिक उदासीनता के चलते पर्यावरणीय क्षति की आशंका बढ़ती जा रही है।
वन विभाग और जिला प्रशासन से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई करें ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिलाधिकारी के आदेशों के स्पष्ट उल्लंघन के बावजूद प्रशासन ने अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया है। न तो लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है और न ही पर्यावरणीय क्षति की भरपाई के लिए कोई पहल दिखाई दे रही है।सूत्रों के अनुसार, स्थानीय प्रशासन इस प्रकरण को टालने की कोशिश कर रहा है, जबकि यह स्पष्ट रूप से सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन है।आमतौर पर किसी भी पेड़ कटान की सूचना पर तत्काल प्रभाव से स्थल निरीक्षण और रिपोर्ट बनानी चाहिए थी, लेकिन यहाँ पर कई दिन बीतने के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इससे विभाग की कार्यशैली और तत्परता पर गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं।
वन प्रवेक्षण कार्यक्रम के उल्लंघन की यह घटना प्रशासन और वन विभाग के लिए एक चेतावनी है। यदि अभी भी सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो वन संरक्षण के प्रयास केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएंगे। ज़रूरी है कि इस तरह के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करते हुए दोषियों को दंडित किया जाए, ताकि हरित क्षेत्र का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके और भविष्य में ऐसे प्रयासों की गंभीरता बरकरार रह सके। इस संबंध में वन कर्मियों से बात की गई तो नाम न छापने की शर्त पर गोल मटोल जबाब देते रहे।

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