शासन द्वारा कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को पास के स्कूलों में समायोजित करने के आदेश ने बच्चों की शिक्षा को गंभीर संकट में डाल दिया है। विकासखंड पिसावां के कई गांवों में ऐसे समायोजन के बाद करीब 80 फीसदी बच्चे अब स्कूल ही नहीं जा रहे हैं। सबसे बड़ा कारण — स्कूलों की दूरी और रास्तों की असुरक्षा।

हसनापुर का मामला:
प्राथमिक विद्यालय हसनापुर को दो किलोमीटर दूर स्थित कर्मलकुइयाँ विद्यालय में मर्ज किया गया है।
प्रधानाध्यापक के मुताबिक, 42 नामांकित बच्चों में केवल 2-3 ही विद्यालय पहुंच पा रहे हैं।
अभिभावक चंद्रभाल सिंह, पुनई सिंह, नैमिष सिंह और कमलेश सिंह ने बताया कि रास्ता गन्ने के घने खेतों और झाड़ियों से होकर गुजरता है, और क्षेत्र में सियारों की भी मौजूदगी है।
“इतनी दूर और खतरनाक रास्तों से हम अपने मासूम बच्चों को कैसे भेजें?— सवाल है जो हर अभिभावक की जुबां पर है।
हजियापुर की तस्वीर:
प्राथमिक विद्यालय हजियापुर के छात्रों को पल्हरिया विद्यालय में समायोजित किया गया है।
प्रधानाध्यापक संजीव शुक्ला ने बताया कि 26 छात्रों में से एक भी नहीं पहुंच रहा।
अभिभावकों — सुशील वर्मा, रमेश, कमलेश — ने बताया कि “रास्ते में तालाब और सुनसान खेत हैं। ये बच्चे 6 से 10 साल के हैं, हम इन्हें अकेले इतनी दूर कैसे भेज दें?
व्यवस्था पर उठते सवाल:
ग्रामीणों का कहना है कि शासन ने भले ही शैक्षिक सुधार के उद्देश्य से समायोजन का निर्णय लिया हो, लेकिन जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर दिया गया।
स्कूल जाने के रास्ते न सुरक्षित हैं, न परिवहन की कोई सुविधा।