सुदर्शन
संदेश महल
पिसावां (सीतापुर) कुइयांखेरा में चल रही श्रीमद भागवत कथा के समापन अवसर पर कथावाचक विमल शास्त्री द्वारा रावण वध का प्रसंग सुनाया समापन अवसर पर विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। कथा सुनाते हुये शास्त्री जी ने कहा ये तो सब जानते हैं कि रावण एक राक्षस कुल का राजा था, जो अत्यंत ही बलशाली, महापराक्रमी योद्धा और एक परम शिव भक्त था। लेकिन इसके साथ ही वो शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। जब धरती पर उसका पाप बढ़ गया तब भगवान विष्णु ने राम के रूप में धरती पर जन्म लेकर उसका नाश किया था। तब रावण ने मरने से पहले भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को कुछ उपदेश दिए थे, जो आज के समय में भी लोगों के लिए सफलता की कुंजी है। रावण जिस समय मरणासन्न अवस्था में था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। राम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। लक्ष्मण काफी देर तक रावण के सिर के पास खड़े रहे, लेकिन रावण ने उनसे कुछ नहीं कहा। इसके बाद लक्ष्मण वापस लौट आए तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि अगर किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर के पास। यह बात सुनकर लक्ष्मण वापस रावण के पास गए और उसके पैरों के पास खड़े हो गए। उस समय महापंडित रावण ने उपदेश देते हुये कहा कि इंसान को कभी भी अपने शत्रु को खुद से कमजोर नहीं समझना चाहिए, ‘खुद के बल का दुरुपयोग कभी भी नही करना चाहिए। घमंड इंसान को ऐसे तोड़ देता है, जैसे दांत किसी सुपारी को तोड़ता है’। इंसान को हमेशा अपने हितैषियों की बातें माननी चाहिए, क्योंकि कोई भी हितैषी अपनों का बुरा नहीं चाहता’। हमें शत्रु और मित्र की हमेशा पहचान करनी चाहिए। कई बार जिसे हम अपना मित्र समझते हैं वे ही हमारे शत्रु साबित हो जाते है रावण का पांचवां और सबसे बेहतरीन उपदेश था, ‘हमें कभी भी पराई स्त्री पर बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए, क्योंकि पराई स्त्री और बुरी नजर डालने वाला इंसान नष्ट हो जाता है।