प्रधानी के लिए दलित लड़कियों से रचाई शादी,आरक्षण के चलते अरमान रह गए अधूरे

 

जेपी रावत
कुशीनगर संदेश महल समाचार

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में अनुसूचित जनजाति की आबादी न के बराबर है लेकिन 2011 जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार यहां 68 हजार लोग अनुसूचित जनजाति श्रेणी के हैं। हालांकि यह आंकड़े किन लोगों के हैं, यह आज भी रहस्य है। माना जाता है कि कुछ जिलों में गोड़ व खरवार जाति को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में रखा गया है और तकनीकि त्रुटिवश कुशीनगर में भी इन जातियों के लोग अनुसूचित जनजाति श्रेणी में गिन लिए गए होंगे।
यह लोग भी खुद को एसटी श्रेणी में नहीं मानते हैं और न ही प्रशासन इनका एसटी का प्रमाण पत्र ही निर्गत करता है। परंतु वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव में गोड़ व खरवार बिरादरी के कई लोगों ने पड़ोसी जिला देवरिया की लड़कियों से शादी करके उन लड़कियों को यहां पुराने जाति प्रमाण पत्र के आधार पर उम्मीदवार बनाकर चुनाव जिता दिया।
पिछली बार की सफलता ने इस बार कईयों को ऐसा करने के लिए प्रेरित कर दिया। लिहाजा पंचायत चुनाव की घोषणा होते ही देवरिया, महराजगंज के अलावा पड़ोसी प्रांत बिहार व झारखंड तक जाकर लोगों ने अनुसूचित जाति की लड़की को खोजकर शादी की। इतना ही नहीं जिले में आकर उन शादियों को पंजीकृत भी कराया।
तैयारी थी कि एसटी श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों पर नई दुल्हनों को उम्मीदवार बनाकर पर्दे के पीछे से ग्राम पंचायत की बागडोर अपने हाथ में रखी जाएगी। आरक्षण की पहली सूची जारी होने पर यह तैयारी पूरी होती भी दिखी। जगह-जगह खुशी में दावतें भी होनी लगीं। परंतु हाईकोर्ट के आदेश पर जब दोबारा आरक्षण सूची बनाई गई, उसी दौरान प्रशासन ने यह गाइडलाइन भी जारी कर दी कि जहां एसटी श्रेणी के लोग नहीं हैं अगर उनके गांव आरक्षित हो रहे हैं तो उसका आरक्षण क्रम बदल दिया जाए। इस गाइडलाइन के जारी होते ही ग्राम प्रधान के आरक्षित 39 में से 23 सीटों पर आरक्षण ही बदल गया। इन सीटों के अनारक्षित, महिला व पिछड़े वर्ग में आरक्षित कर दिया गया। आरक्षण का क्रम बदलने से इन संभावित उम्मीदवारों को गहरा झटका लगा है।
चुनाव में सफलता के लिए नेता कैसे-कैसे दांव आजमाते हैं, इसका एक नमूना पंचायत चुनाव में दिखा। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार बनाने के लिए कुछ लोगों ने दूसरे प्रांत की अनुसूचित जनजाति की लड़की से शादी कर ली लेकिन इनमें से कुछ की किस्मत खराब निकली।
हाईकोर्ट के निर्देश पर दोबारा हुए सीटों के आरक्षण में पहले आरक्षित रहे 23 गांवों का आरक्षण ही बदल गया। अब एसटी लड़की से शादी के बाद भी बेचारे चुनाव लड़ने से वंचित हो गए।

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