रिपोर्ट
सूर्य प्रकाश मिश्र
सीतापुर संदेश महल समाचार
ढोल-मंजीरे की थाप पर थिरकते साधु-संत हर तरफ रामधुन की गूंज। पुण्य मार्ग पर राम नाम का जाप करते लोगों के सैलाब के बीच नैमिषारण्य से शुरू हुई 84 कोसी परिक्रमा में आस्था के कुछ ऐसे ही रंग दिखे। जो मनभावन और लुभावने रहे।

सीतापुर के नैमिषारण्य-मिश्रिख इलाके में पौराणिक 84 कोसी परिक्रमा को महंत भरत दास ने विधिवत परिक्रमा की शुरुआत की।
इस दौरान एसडीएम मिश्रिख, सीओ मिश्रिख सहित अन्य पुलिस अफसरों ने उनका स्वागत करके परिक्रमा के मार्ग पर साथ में गुजरे। देश विदेश से आए तमाम श्रद्धालु सुबह से ही परिक्रमा मार्ग पर आस्था के विभिन्न रूपों में दिखाई दिए। इसके साथ ही रामदल भी जय श्रीराम के नारों के साथ निकल पड़ा।


इस दौरान सिर पर सामान की गठरी उठाए महिलाएं, बच्चे व बुजुर्गों में परिक्रमा के प्रति गहरी आस्था दिखाई दी। महंत भरत दास भव्य रथ पर सवार होकर पहुंचे। उसके साथ बड़ी संख्या में संत महंत थे। उन्होंने परिक्रमा के साथ ही चक्रतीर्थ का पूजन किया।

श्रद्धालुओं ने स्नान पूजन के बाद नैमिषारण्य की धरती से कोरौना पड़ाव के लिए कूच कर किया। इस परिक्रमा में कोई मां को तो कोई पिता को तो कोई अपने गुरु को परिक्रमा कराने निकला था। कुछ ऐसे भी थे जो पैरों से निशक्त थे। बावजूद वे परिक्रमा में शामिल थे।
हर कोई परिक्रमा पूरी करने के लिए बेताब नजर आ रहा था। घोड़े-हाथी व डोली में सवार साधु-संत और महंत परिक्रमा में कुछ अलग ही छठा बिखेर रहे थे। रामधुन गुनगुनाते हुए श्रद्धालु कोरौना पड़ाव की तरफ बढ़ते जा रहे थे। तमाम ऐसे श्रद्धालु थे,जो नंगे पैर ही परिक्रमा पर निकले थे।श्रद्धालु रास्ते में पड़ने वाले तीर्थों में स्नान कर मंदिरों में पूजन कर रहे थे,जिसके बाद आगे बढ़ते जा रहे थे। नैमिषारण्य से पहले पड़ाव कोरौना तक करीब 15 किलोमीटर की दूरी में श्रद्धालुओं का अद्भुत नजारा दिखा।

दोपहर से श्रद्धालुओं का कोरौना पड़ाव पहुंचना शुरू हो गया था। यहां पहुंचते ही श्रद्धालुओं ने खेतों में बागों में डेरा डालना शुरू कर दिया। श्रद्धालुओं का यह क्रम देर शाम तक चलता रहा।
पड़ाव डालने के उपरांत श्रद्धालुओं ने द्वारिकाधीश तीर्थ में स्नान किया और करीब के मंदिर में पूजा अर्चना की। यह परिक्रमा होली से एक दिन पहले मिश्रिख में संपन्न होगी। परिक्रमा में शामिल होने के लिए कई प्रांतों से लोग सीतापुर पहुंचे।

84 कोसी परिक्रमा की ख्याति सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं है। बल्कि देश की सीमाओं को लांघ कर नेपाल तक पहुंच गई है। यही वजह रही कि परिक्रमा में तमाम ऐसे परिवार शामिल थे, जो नेपाल के रहने वाले हैं। वे नेपाल से परिक्रमा करने आए थे। इन श्रद्धालुओं का कहना था कि वे अपने पूर्वजों से इस परिक्रमा का महत्व सुनते आ रहे हैं।