भारत अन्न उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश,फिर भी फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री नहीं डेवेलप

रिपोर्ट
प्रताप सिंह
संदेश महल समाचार

सुप्रीम कोर्ट की फौरी राहत के बाद कि सरकार और किसान दोनो बातचीत के लिए आगे आये। इस समस्या का सबसे बड़ा बिंदु है किसानों का सरकार के प्रति अविश्वास जो उनको अपने अनुभवो से आया है। दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है वाली कहावत चरितार्थ है। यहां देश मे अन्न का उत्त्पादन बेतहाशा है साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। खपत कम है। भंडारण ज्यादा बाजार है। नही माल ज्यादा खपत कम तो मूल्य वृद्धि का सवाल ही नही किसान के माल की कीमत सस्ती होना स्वाभाविक है। जब बाजार ही नही। अर्थशास्त्र में माल ज्यादा हो और मांग कम तो उचित मूल्य मिले कहाँ से..? भारत मे खान पान की संस्कृति पश्चिम की तरह डेवेलप ही नही हुई। लोग गेंहू पिसवा कर आटा खा लेते है। फ़ूड प्रोसेसिंग की संस्कत्ति पैदा ही कहाँ हो..? ज्यादा से ज्यादा कुछ कंपनियां आटा ब्रांड की शक्ल में या चावल बाजार में बेच पाती है। जहां विदेशो में लगभग 50% खपत फ़ूड प्रोसेसिंग की है। वहां भारत जैसे देश मे 15% भी नही हो पाती। दूसरा फेक्टर अन्न का विदेशो में एक्सपोर्ट ना के बराबर है। 2014 से पहले जो कृषि सेक्टर 27% की दर से ग्रोथ कर रहा था अब 12% की दर से गिर रहा है। ये कन्फ्यूज़ करने वाली स्थिति है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। अन्न उत्पादन में लेकिन भारत का किसान सबसे गरीब है। उसकी मासिक आय करीब 5 हज़ार रुपये से भी कम है जो कि न्यूनतम आय से भी कम बैठती है। इसकी दो प्रमुख वजहें है। देश मे मांग से ज्यादा अन्न और विदेशो में खपत न होना। वहां बाजार तलाशा नही गया। ले दे के सरकार FCI के जरिये मात्र 13% ही न्यूनतम मूल्य पर अन्न खरीद पाती है। बाकी का नही। बाकी बचा हुआ अन्न किसान मजबूरी में बाहर अनाज बेचता है। जहां उसे बहुत कम दामो में अपना गेंहू बेचना पड़ता है। FCI के पास भारत का अगले तीन सालो का अन्न भंडार सुरक्षित है। एक तरफ सरकार चुनावी लाभ के लिए हर साल MSP बढ़ा देती है। जिससे किसान अतिउत्साही होकर और ज्यादा उत्त्पादन करता है। दूसरी तरह सरकार चुनाव खत्म होने पर खरीद की मात्रा कम कर देती है। और बाकी का अन्न राम भरोसे छोड़ देती है। किसान जाए तो जाये कहां..? इस कृषि कानून से किसान और भी ज्यादा अनिश्चितता से घिर गया है। क्योंकि उसकी बची खुची आस MSP पर ही टिकी है। जो उसे फौरी राहत सरकारी मंडियो से मिल जाती थी पर अब वो आस भी खत्म होने के कगार पर है। किसानों को मांग के मुताबिक फसल उगाने के लिए साल दर साल अपडेट करने की बाते तो सरकारी दावों में बहुत की जाती है। पर होता कुछ नही।इसके उलट भारतीय किसान ने ज़रूर खुद को समय अनुसार अपडेट किया है। जिनकी जोत कम है। जैसे यूपी बिहार या मध्यप्रदेश में वहां के किसानों ने दलहन की फसलों और सब्जियो की तरफ ध्यान दिया है ताकि उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सके लेकिन जैसे दूध उत्पादन के मामले में किसानों ने अच्छी प्रगति की वैसे कृषि क्षेत्र में हो नही पायी। दूसरी वजह कि भारत का फ़ूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में बहुत पीछे है। इसकी एक अन्य वजह है। टैक्स की भरमार होना जिससे कि उत्पाद का दाम महंगा हो जाता है।कोई कोई सौ दो सौ ग्राम 30 या 40 ₹ में टोमेटो प्यूरी क्यों खरीदेगा जबकि उसे बाजार में टमाटर इसी भाव एक किलो मिल जाये..? टैक्सो की अधिकता ने ये इंडस्ट्री 2nd स्टेज तक भी ढंग से नही पहुँच पायी है। किसान की खुशहाली इसी में है कि उसकी खपत ज्यादा से ज्यादा देश भर में पहुंचे ताकि उसकी फ़सल का बढ़िया दाम उस तक पहुँचे। पर उसके लिये बाज़ार नही है। यहां सरकार भी गलती दर गलती कर रही है। वो मार्केट प्लेयर बढ़ा रही है प्राइवेट क्षेत्र को बढ़ावा देकर परंतु उसके लिए जो बाजार विकसित करना था वो नही कर पाई है। ना ये इस सरकार ने पिछली सरकारो ने। समस्या जस की तस है। नए प्लयेर लाने से क्या फायदा बाजार तो उतना ही है और जब मांग ही नही है उतनी तो वो भी कहाँ बेच पाएँगे अपने उत्पाद और बढ़िया दाम कैसे दे पाएंगे किसानों को.?इसीलिए किसानों के लिए MSP एक डूबते को तिनके का सहारा दिखता है। भारत अपने कुल अन्न उत्पादन का केवल 7% ही एक्सपोर्ट कर पाता है केवल 7 प्रतिशत। जिसमे पोल्ट्री से लेकर मांस फल तक अन्न में शामिल है और ये कहाँ जाता है..?अधिकतर मध्य पूर्व देशों और खाड़ी के देशों में,निर्यात के मामले में भारत जो दुनिया का कई मामलों मे सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वो यूरोप के बेल्जियम जैसे छोटे देश से भी पीछे है। यहां दुनिया में हम 13वे नंबर पर है। फाइनांस कमीशन ने राज्यो से बात करके एक रिपोर्ट बनाई जिसमे ये निकल कर सामने आया कि एग्री कल्चर एक्सपोर्ट में 2009 से लेकर 2014 तक हमारा सालाना निर्यात 27% की दर से बढ़ रहा था जो अब घटकर 2014 से 2019 तक आते अब 12% सालाना की दर से गिर रहा है। ये स्थिति कोरोना के चलते भयावह है। ऐसा क्यों है..? ऐसा इसलिए है कि हमने निर्यात बाज़ार को विकसित करने के लिए जो ट्रेड समझौते दुनिया के देशों के साथ करने थे वो नही किये। अगर आप बाहर अपना माल बेचेंगे तो उनका भी कोई उत्पाद आपको लेना पड़ेगा। ये इस बाजार का सीधा नियम है लेकिन हमारी फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की हालत खस्ता है। हम paked माल की डिमांड को पूरा नही कर सकते।उनका paked माल यहां नही ले सकते क्योंकि यहां उसका बाजार नही है। बाजार क्यों नही है क्योंकि हमने टैक्स इतने लाद दिए है इस इंडस्ट्री में कि कोई इंडस्ट्री यहां अपना पैसा लगाना नही चाहता इतने टैक्सो के कारण महंगे दाम हो जाने पर उनका माल कौन लेगा..? डोमेस्टिक बाजार में मांग नही है। विदेशी निर्यात 12 % की दर से सालाना गिर रहा है और अन्न भरपूर मात्रा में यहां पड़ा हुआ है।किसान की हालत ये है कि वो अपने अन्न का एक छोटा सा हिस्सा ही सरकारी दाम पर बेच पाता है क्योंकि सरकार मात्र 13 % ही खरीदता है बाकी भंडार का किसान क्या करे। वो अपने बाकी अन्न को बाहर खुली मंडियो में बेचता है। जहाँ उसे औने पौने दामो में अपना अन्न बेचना पड़ता है। फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री हमने डेवेलप की नही कि किसान अपना माल वहां बेच पाए। वो फ़ूड इंडस्ट्री डेवलप इसलिये नही हो पाई कि यहां टैक्स की भरमार है तो कोई यहां इंड्स्ट्री क्यों लगाना चाहेगा। जबकि इसको पता है कि इससे उत्पाद की कीमत अनावश्यक बढ़ेगी तो ग्राहक वो सामान क्यों खरीदेगा..? इस कारण देश की आज़ादी से ही भारत की कृषि एक मकड़जाल में धंस चुकी है। इसका रास्ता क्या है..? पता सब सरकारों को था और हैं लेकिन सुधार के नाम पर शुरू से यहां सिर्फ़ राजनीति होती आयी हैं।

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