उत्तर प्रदेश जनपद के बाराबंकी के अंतर्गत विकासखंड सूरतगंज के ग्राम लोधौरा में भगवान शिव जी का प्राचीन मंदिर स्थित है, यहां पर वर्ष में अगहनी, कजरी तीज ,मलमास, फागुनी व हर सोमवार को यहां पर मेला लगता है, फाल्गुनी मेले में भगवान शिव के कांवरिया कांवर में पवित्र गंगाजल बिठूर से लेकर लोधेश्वर महादेवा पहुंचकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं, बताया जाता है कि यहां पर स्थित शिवलिंग स्वयंभू है, जो संसार में 52 स्थानो पर पाए जाते हैं, लोधेश्वर महादेवा का सबसे बड़ा महत्व यह कि अज्ञातवास के समय अपने परिवार के साथ इस क्षेत्र में आकर रुके थे ,माता कुंती के आग्रह पर भीम ने हिमालय की पहाड़ी से भगवान शिव जी को लाए थे उस समय आजकल जैसे कोई साधन नहीं था, पूरा क्षेत्र उबड खबड था ,इसलिए शिवलिंग को लाने में परेशानी हो रही थी, तो उन्होंने एक बहंगी बनाई जिसे कांवर कहते हैं, शिवलिंग के समान भार वाला एक दूसरी पत्थर दूसरी तरफ रख लिया और कंधे पर कांवर लेकर पैदल चलकर लोधेश्वर महादेवा में शिवलिंग कि, स्थापना की तथा दूसरी मूर्ति को जो पत्थर के समान थी उसे ग्राम किंन्तुर में स्थापित किया।
वर्तमान समय में यह स्थान कुंन्तेश्वर महादेव के नाम से आज भी प्रसिद्ध है, लोगों का कहना है कि माता कुंती यहां आकर रुकी थी और भगवान शिव जी का पूजन अर्चन करती थी, इस समय भी यहां पर शिव भक्तों की काफी भीड़ रहती है, विद्वानों का मत है कि ये मूर्ति आज भी पूजित ही मिलती है, बताया जाता है कि आज भी माता कुंती सर्वप्रथम यहां पर आकर भगवान कुंन्तेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करती है, कुंन्तेश्वर महादेव के निकट ग्राम बरोलिया में पारिजात का सुंदर वृक्ष भगवान श्री कृष्णा द्वारा लगाया हुआ आज भी सुशोभित है, इसके आगे इसी मार्ग पर श्री कोटवा धाम प्रसिद्ध मंदिर है।
जहां पर भक्तों की भीड़ प्रतिदिन बनी रहती है, लोधेश्वर महादेवा के चारों दिशाओं में अनेक दर्शनीय स्थल है, जहां पर समय-समय पर लोग दर्शन करने आते हैं, बताया जाता है कि लोधेश्वर महादेवा स्थित मंदिर के निकट गंडकेश्वर नदी बहती थी, जो वर्तमान समय में घाघरा नदी के नाम से प्रसिद्ध है, एक बार इस नदी में बाढ़ आ गई जिससे चलते शिवलिंग बालू से ढक गया, उसके बाद लोधौरा ग्राम निवासी लोधे राम नामक किसान ने अपने खेत में सिंचाई कर रहे थे, उसे समय अचानक समय एक गड्ढे में पानी जा रहा था, जिसको रोकने के लिए उसने काफी मेहनत की लेकिन पानी नहीं रोका ,रात के समय में जब वो सो रहे थे उस समय उन्हें सपना में भगवान शिव के दर्शन हुए और उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर सिंचाई का पानी जा रहा है उसे स्थान को आप खो दिए और वहां पर मेरी एक मूर्ति है, जिसका आप लोग पूजा अर्चना करिए भोर होते ही सपना की बात को साकार करने के लिए लोधेराम ने अपने खेत में फावड़ा लेकर गए और जिस स्थान पर गड्ढे में पानी जा रहा था, उसे खोदना शुरू किया, काफी मेहनत के बाद वहां पर शिवलिंग स्वरूप भगवान शिव के दर्शन हुए, उसके बाद वहां पर खर फूस की टाटिया बांधकर पूजा अर्चना का कार्यक्रम शुरू हुआ, काफी दिनों तक यहां पर पूजा अर्चना चला उसके बाद सिलौटा निवासी बाबा बेनी सागर ने यह पर एक मठिया बनवा दिया और पूजा का कार्यक्रम चलता रहा समय बीतता गया धीरे-धीरे लोगों में श्रद्धा भाव उत्पन्न हुआ और वहां पर एक मंदिर बनवाया गया, जहां पर आज एक विशाल शिव मंदिर बना हुआ है, दूर दरार से आने वाले शिव भक्तगण भगवान शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं, उसके बाद कुंन्तेश्वर महादेव के भी दर्शन पूजन करते हैं, शिवजी के मंदिर के पश्चिम 1 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम मंझौनी में कुरुक्षेत्र स्थित है जहां पर यहां पर आने वाले श्रद्धाल भंडारा करते हैं, इस कुरुक्षेत्र में आज भी अज्ञातवास के समय पांडव द्वारा बनाया गया हवन कुंड स्थित है जो वर्तमान समय में छोटे तालाब का रूप ले लिया है, यहां पर राधा कृष्ण की सुंदर मूर्ति और भीमकू द्वारा खोदा गया ,भीमकू बना हुआ है स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कुएं का जल कई प्रकार की बीमारी ठीक करता है, कानपुर जनपद से एक परिवार प्रतिवर्ष यहां से इसका जल ले जाता है और कोई घर पर परेशानी होती है तो इस जल को सभी ग्रहण करते हैं, और उन्हें फायदा भी होता है, इस कूरूक्षेत्र का संचालन नैमिषशणन तीर्थ से होता है 1965 में यहां पर नैमिष तीर्थ से स्वामी नारदानंद सरस्वती जी आए हुए थे, तभी से यह स्थान आज भी जागृत है, लोधेश्वर महादेवा में दुर्वासा ऋषि पहाड़ी बाबा व नाथ कुटी स्थित है जहां पर भक्तों के साथ-साथ साधु संतों की भी भीड़ रहती है, तहसील रामनगर से लोधेश्वर महादेवा धाम 2 किलोमीटर पड़ता है, कुछ लोगों का यह भी मत है की शिवलिंग गायब होने के बाद सर्वप्रथम एक ग्वालिन को भगवान शिव के दर्शन हुए थे कहते हैं, कि यह ग्वालिन गाय चराने का काम करती थी, जिसमें एक गाय प्रतिदिन शिवलिंग वाले स्थान पर अपना दूध निकाल देती थी, घर पहुंचने पर जब यह गाय दोहने में दिक्कत होती थी, तो ग्वालिन को चिंता हुई और उसने इस गाय की निगरानी करने लगी, एक दिन उसने देखा कि गाय एकांत में एक झाड़ी में खड़ी होकर अपना दूध भूमि पर गिर रही है, ग्वालिन में यह देखकर आश्चर्यचकित हुई और उसने सोचा कि इस भूमि के अंदर जरूर कोई शक्ति है, जिसके चलते मेरी गाय यहां पर दूध गिर रही है, ग्वालिन ने उस स्थान को खोदना शुरू किया, तो उसके नीचे भगवान शिव की मूर्ति प्राप्त हुई, जिसे देखकर ग्वालिन आश्चर्यचकित रह गई और भगवान शिव को प्रणाम करते हुए पूजन अर्चन शुरू किया, जहां पर शिव जी का मंदिर स्थापित है, उसके चारों ओर नजदीक में बसे लोधेराम अवस्थी के वंशज रहते हैं भगवान शिव की कृपा से लोधे राम अवस्थी का नाम भगवान शिव के नाम के आगे लोधेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।