श्रीमद्भागवत कथा कंश वध व विशाल भंडारे के साथ हुई समापन

रिपोर्ट
धर्मेंद्र कुमार
बाराबंकी संदेश महल समाचार

श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन कहने का आशय अंतिम दिन कथा व्यास पंडित सर्वेश मिश्रा सौरंगा बेलहरा द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध किया और फिर अपने नाना कंस के पिता उग्रसेन को राजगद्दी सौंपी उसके बाद भगवान ने अपनी एक नगरी द्वारिका पुरी बसाई और रहने लग गए।व्यास जी ने अपने श्री मुख से भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा सुनाई
और इसी के साथ मन में बसा कर तेरी मूर्ति उतारू मैं भगवान तेरी आरती…
कथा के प्रसंग को प्रारंभ करते हुए श्री व्यास ने बताया कि नन्द बाबा और उनकी पत्नी यशोदा ने ही भगवान श्रीकृष्ण का पालन पोषण किया। इस दौरान कंस ने उन्हें मारने के अनेक प्रयास किये,परन्तु सब विफल हो गये। तब कंस ने अपने मंत्री और रिश्तेदार अक्रूर को कृष्ण और बलराम को लेने के लिए भेजा।

वह अपने राज्य में उत्सव का आयोजन करके इसमें दोनों भाइयों को बुलाकर मार डालने की योजना बनाकर बैठा था। जब अक्रूरजी कृष्ण और बलराम को लेने गोकुल पहुंचे तो कोई भी गोकुलवासी नहीं चाहता था कि वे गोकुल छोड़ कर जाएँ, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण हैं और इसी उद्देश्य हेतु उन्होंने जन्म लिया हैं। इस प्रकार समझाने के बाद अक्रूर के साथ वो दोनों भाई कंस के राज्य में आ गये।

श्रीकृष्ण और बलरामजी के मथुरा पहुँचने पर कंस ने योजनानुसार एक मद – मस्त और पागल हाथी को दोनों भाइयों पर छोड़ दिया। हाथी कृष्ण और बलराम की ओर दौड़ पड़ा और मार्ग में आने वाली हर वस्तु को नष्ट कर दिया. तब श्री कृष्ण अपने रथ से उतरे और अपनी तलवार से उस हाथी की सून्ड काट दी और हाथी की मृत्यु हो गयी। इसके बाद वह उस स्थल पर गया, जहाँ उसने अपने कूटनीति – पूर्ण मल्ल – युद्ध का आयोजन किया था. यहाँ उसने दोनों भाइयों को मल्ल – युद्ध हेतु ललकारा इस युद्ध में हार का अर्थ था – मृत्यु और इसमें कंस की ओर से राक्षसों के कुशल योध्दा ‘ मुश्तिक और चाणूर ’मल्ल में हिस्सा ले रहे थे। इनमे से मुश्तिक पर बलरामजी ने मल्ल प्रहार करना प्रारंभ किये और चाणूर पर भगवान श्रीकृष्ण ने और कुछ ही समय पश्चात् मुश्तिक और चाणूर की मृत्यु हो गयी।

कंस ये घटना देखकर हैरान था, तभी श्रीकृष्ण ने कंस को ललकारा कि “ हे कंस मामा, अब आपके पापों घड़ा भर चुका हैं और आपकी मृत्यु का समय आ गया हैं. ” ये सुनते ही वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने चिल्लाना शुरू किया कि कंस को मार डालो, मार डालो क्योंकि वे सब भी कंस के अत्याचारों से दुखी थे। कंस वहाँ से अपनी जान बचाकर भागना चाहता था, परन्तु वो ऐसा नही कर पाया।तब श्रीकृष्ण ने उस पर प्रहार किये और उसे अपने अत्याचारों की याद दिलाने लगे कि कैसे उसने मासूम बच्चों की हत्याएं की, कृष्ण की माता देवकी और पिता वासुदेवजी को बंदी बनाकर रखा, उनकी संतानों की हत्या की, अपने स्वयं के पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बनाया और स्वयं राजा बन बैठ, जनता पर कैसे ज़ुल्म किये और उनके साथ अन्याय किये।इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से कंस के सर को धड़ से अलग कर दिया और उसका वध कर दिया।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के अन्यायों का दमन करते हुए उसका वध कर दिया।इसी के साथ श्रीमद्भागवत कथा के आठवें दिन हवन,पूजन यज्ञ कराया गया जिसमें भक्त गणों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया उसके बाद विशाल भंडारे के साथ श्रीमद् भागवत कथा का समापन हुआ। ग्रामीण कलाकारों द्वारा मनोहर झांकियां मोहे एक जरूरी काम कान्हा कहां मिलेंगेे‌।

और अरे द्वारपालो सुदामा से कह दो दिखाई गई। अमरेश प्रजापति (सुदामा) मनु (श्री कृष्ण) दिनेश प्रजापति वाह रोहित मिश्रा (द्वारपाल) की भूमिका निभाते हुए नजर आए

कमेटी सदस्य डॉ पवन , अमरनाथ मिश्रा उर्फ़ छोटू ,शेष कुमार कोटेदार सत्येंद्र रावत आशाराम प्रजापति, भगौती प्रसाद ,बरसावन प्रजापति एवम समस्त ग्रामवासी मौजूद रहे।

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