रिपोर्ट
रमेश कुमार तिवारी
प्रयागराज संदेश महल समाचार
संगम की रेती पर लगे शिविरों में इस बार दर्जन भर से अधिक महिला साध्वियां प्रभु के चरणों का ध्यान कर रही हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट की वकील भी हैं और स्कूल-अस्पताल चलाने वाली समाज सेविका भी। सांसारिक मायामोह का परित्याग करने के बाद ऐसी महिला संन्यासिनियां जप, तप और ध्यान के बीच सेवा के जरिये हरि दर्शन के लिए साधना कर रही हैं।
महज पांच वर्ष की उम्र में ही मां का साया सिर से उठने के बाद देवी भगवती के चरणों की भक्ति में ध्यान लगाने वालीं अमिता के आध्यात्मिक लगाव की कहानी कम दिलचस्प नहीं हैं। पिता चाहते थे कि बेटी पढ़ लिखकर नाम ऊंचा करे। पिता के दुलार और बेहतर भविष्य बनाने की चिंता के बीच अमिता ने पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाई की। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा से वर्ष 1989 में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने तीन विषयों संगीत, इतिहास और फिर सामाजिक विज्ञान से एमए किया।
संगीत विषय में ही शोध कर उन्होंने पीएचडी की उपाधि भी ली और फिर एलएलबी भी किया। अमिता बताती हैं कि इस बीच एमपी में ही शहडोल गर्ल्स डिग्री कॉलेज में संगीत विभाग में उन्हें प्रवक्ता के पद पर तैनाती मिल गई, लेकिन नौकरी के साथ वह बहुत दिनों तक तालमेल नहीं बना पाईं। अंतत: दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने वकालत शुरू कर दी। सुप्रीम कोर्ट की वकील डॉ. अमिता को फिर भी वह दुनिया रास नहीं आई। अंतत: एडवोकेट अमिता ने सांसारिक मायामोह का परित्याग कर संन्यास ले लिया। अब वह संन्यासिनी डॉ. राधाचार्या बन गईं हैं।
माघ मेले में महावीर मार्ग के सरस्वती मार्ग पर गंगा किनारे राधाचार्या का राधा आध्यात्मिक सत्संग समिति का शिविर ध्यान-साधना और सेवा का केंद्र बन गया है। इसी तरह जूनागढ़ की समाजसेविका अंबिका अब जय अंबिकानंद गिरि बन गई हैं। जूनागढ़ में उनके कई स्कूल और अस्पताल के अलावा अन्य लोक कल्याणकारी केंद्र संचालित हो रहे हैं। उन्होंने हाल में ही जूना अखाड़े की संन्यासिनी के रूप में उन्होंने माघ मेले में संन्यास धारण किया। वह भी अक्षयवट मार्ग पर जप, तप ध्यान में रमी हुई हैं।