मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ हैं मेरी कलम
मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो भी,इंकलाब लिख जाता हैं।
मैनपुरी से संदेश महल ब्यूरो रिपोर्ट हिमांशु यादव के साथ।
जिला के कस्वा बेवर में भी क्रांतिकारियों ने 14 अगस्त 1942 को अग्रेजी हुकूमत की पुलिस को खदेंडकर बेवर को एक दिन के लिए आजादी दिलाई थी।और नारे वाजी करते हुए थाने पर तिरंगा फहराया था।अगले ही दिन 15 अगस्त 1942 को अंग्रेज पुलिस और सेना द्वारा क्रांतिकारियों पर की गई गोलीबारी में बेवर के एक छात्र सहित तीन क्रांतिकारी शहीद हो गए थें।
गौरतलव है कि भारत देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी। लेकिन प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन से ही क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चिंगारी भड़कने लगी थी। अगस्त 1942 की राष्ट्रीय क्रांति में महात्मा गांधी द्वारा करो या मरो और अंग्रेजो भारत छोड़ो के आव्हान पर बेवर क्षेत्र की जनता आजादी की लड़ाई में दीवानी होकर कूद पड़ी।14 अगस्त 1942 को बेवर थाने पर कब्जा करके अंग्रेज पुलिस को खदेड़कर थाने पर तिरंगा फहरा दिया। एक दिन के लिए ही बेवर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया था।15 अगस्त 1942 को बाहर से आई अंग्रेज पुलिस और सेना ने बेवर थाने पर मौजूद क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की।अंग्रेज पुलिस और सेना का मुकाबला करते हुए बेवर के क्रांतिकारी छात्र कृष्ण कुमार,सीताराम गुप्ता,जमुना प्रसाद त्रिपाठी सीने पर गोलियां खाकर शहीद हो गए थें। प्रति बर्ष 14 अगस्त को बेवर में आजादी के दीवाने तीनों क्रांतिकारियों को हर मौके पर याद किया जाता है।
कस्वा बेवर में शहीदों के बलिदान स्थल पर वर्ष 1948 से 15 अगस्त को बलिदान दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हुआ। वर्ष 1986 में 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन से मेले की शुरुआत हो गई। तब से लगातार प्रति बर्ष लगने वाले शहीद मेला में देशभर के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों का मेला संयोजक राज त्रिपाठी द्वारा सम्मान किया जाता है।
बेवर को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने वाले अमर शहीदों की याद में बेवर में शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया था। शहीद स्मारक में तीनों शहीदों की प्रतिमाएं और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हुए जिलेभर के शहीदों के चित्र लगाए गए हैं। 14 अगस्त को बेवर में क्रांतिकारियों को याद किया जाता है।