डॉ0 ऊषा चौधरी की प्रथम प्रकाशित काव्यसंग्रह ‘वीतरागी मानस’ का विमोचन

जेपी रावत
बाराबंकी संदेश महल समाचार

आज दुनिया से संवेदना मरती जा रही है। बेइमानी, भ्रष्टाचार और युद्ध विभीषिकाओं के दौर में कविता की प्रासांगिकता और अधिक बढ़ जाती है। साहित्य और शिक्षक की भूमिका सदा-सर्वदा उल्लेखनीय रही है। कविता समाज को दिशा देती है।उक्त विचार शनिवार को मुंशी रघुनंदन प्रसाद सरदार पटेल महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय में डॉ0 ऊषा चौधरी की प्रथम प्रकाशित काव्यसंग्रह ‘वीतरागी मानस’ के विमोचन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अवध भारती संस्थान के अध्यक्ष राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ0 राम बहादुर मिश्र ने व्यक्त किए। श्री मिश्र ने कृतिकार डॉ0 चौधरी की प्रशंसा में कहा कि मानवीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना बहुत ही रोचक एवं सरल शब्दों में करके कविता लेखन की महाकला में पारंगत कृतिकार की रचनाएं सर्वग्राह्य होती नजर आ रही हैं।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लोकप्रिय वक्ता प्रसिद्ध साहित्य समीक्षक डॉ0 श्याम सुंदर दीक्षित ने कहा कि आत्मअन्वेषण ही कविता है। कविता जीवन की आह भी है और उछाह भी है। कविता-सरिता ह्रदय के भाव समुद्र से निकलते हुए अपने दोनों तटों को अभिसिंचित करते हुए निरन्तर उन्नति पथ पर प्रवाहित होती रहती है। डॉ0 दीक्षित ने यह भी कहा कि काव्यसंग्रह के माध्यम से ऊषा जी की वीतरागी प्रवृत्ति स्वान्तः सुखाय से प्रारंभ होकर स्वान्तस्तमः शान्ताय से होती हुई विश्व को प्रकाशित करती हुई एक नई साहित्यिक व्यवस्था प्रदान करती है। आपकी कविता गुरुदेव रविन्द्र जी की एकला चलो रे के, जयशंकर प्रसाद जी के ‘आँसू’ तथा कबीर जी के ‘अल्हड़ पदों’ के बहुत करीब है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ0 विनय दास ने कहा ‘वीतरागी मानस’ कथ्य से कविता अपने शीर्षक की सार्थकता को समेटे हुए विशिष्ट काव्य संग्रह है। अभिव्यक्तियों की आज़ादी के दौर में पहचान का संकट खड़ा हो जाता है। डॉ0 ऊषा चौधरी ने अपने नवाचार से बड़े ही सार्थक प्रयोगों के द्वारा अपनी मौलिक राह को चुनते हुए काव्यक्षेत्र में महादेवी वर्मा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एक बड़ी लाइन खींची है।
विशिष्ट अतिथि जिला समाज कल्याण अधिकारी मुख्यालय डॉ0 आकांक्षा दीक्षित ने कहा कि हृदय तो ईश्वर ने सभी को दिया है परन्तु उन अनुभूतियों को हृदय की गहराई से अनुभव कर उन्हें शब्दों में पिरोना कवि का ही विशिष्ट कर्म है। अतः कवि आमजनों में विशिष्ट होता है। कवयित्री की यह कृति उन्हें विशिष्टता प्रदान करती है।अवधी साहित्यकार प्रदीप सारंग ने कहा कि डॉ0 ऊषा चौधरी संत प्रकृति की महिला हैं। निस्पृह भाव से घर से लेकर कार्यालयी पदों तक दायित्वों का निर्वाह बाखूबी करने का चरित्र इनकी रचनाओं में पूर्ण भावप्रवणता के साथ रूपायित हुई है।कृतिकार डॉ0 ऊषा चौधरी ने कहा कि मेरा साहित्य हृदय की अप्रकट अनुभूतियों के ही उद्घाटन का सुन्दर प्रयास है जिसे मैंने कोरोना काल में संकलित कर आज लोकार्पित किया है। मेरे प्रथम प्रयास कथ्य से कविता तक के लिए आप सभी से तटस्थ समीक्षा की अभिलाषा करती हूँ।विमोचन समारोह को महाविद्यालय के सचिव उमाशंकर वर्मा ‘मुन्नू भैया’, अध्यक्ष सरदार पटेल संस्थान धीरेन्द्र कुमार वर्मा, डॉ0 बलराम वर्मा, डॉ0 ओपी वर्मा ओम, पंकज कँवल, इकबाल राही, दीपक सिंह, अनपम वर्मा दिलीप वर्मा ने भी विचार व्यक्त किये। उर्दू विभाग की प्रवक्ता डॉ0 सिफत्तुज जहेरा जैदी ने विमोचित कृति वीतरागी मानस की विभिन्न साहित्यकारों के साथ तुलनात्मक विवेचन करते हुए कवयित्री की विशिष्टता को उद्घाटित किया।
कार्यक्रम में कु0 हर्षिका, डॉ0 रचना श्रीवास्तव, डॉ0 आरती श्रीवास्तव, डॉ0 रश्मि श्रीवास्तव, श्रीमती रजनी श्रीवास्तव ‘निशा’, श्रीमती कल्पना रस्तोगी, श्रीमती मोनिका तिवारी आदि ने स्वरचित कविताओं का काव्यपाठ भी किया गया। सभी अतिथियों का पुष्प, स्मृति चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान कर स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती मोनिका तिवारी, प्रवक्ता-गृह विज्ञान ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 रश्मि श्रीवास्तव ने किया।दीप प्रज्जवलन व सरस्वती वंदना के साथ शुभारम्भ हुये विमोचन समारोह में समस्त अतिथियों को अंगवस्त्र एवं प्रतीक चिन्ह व डॉ0 राम बहादुर मिश्र को पंच वस्त्र प्रदान कर कृतिकार ने विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया। इस मौके पर प्रबंधसमिति के सम्मानित सदस्य, महाविद्यालय के शिक्षकगण एवं छात्राएं उपस्थित रहीं।