जिंदगी में हर लड़ाई ताकत से नहीं, अक्ल से जीती जाती है। और जब कोई अध्यापक अपने घरेलू मोर्चे पर उतरता है, तो उसकी सबसे बड़ी ताकत होती है – उसकी बुद्धिमता।
रामनगर कस्बे में रहने वाले मास्टर साहब यानी विनीत कुमार एक सरकारी विद्यालय में अध्यापक थे। शांत, मितव्ययी और व्यवहार में बेहद सरल। उनकी पत्नी अनीता, पढ़ी-लिखी, सुंदर और थोड़ी भावुक स्वभाव की। हालांकि दोनों का जीवन शांतिपूर्ण था, पर कभी-कभी घरेलू झगड़े के हल्के-फुल्के बादल भी उमड़ते-घुमड़ते रहते।
एक दिन की बात है। अनीता थोड़ी नाराज़ सी दिखीं। उन्होंने रसोई में हाथ रोकते हुए विनीत से कहा,
“आप कभी मुझे बाहर खाना खिलाने क्यों नहीं ले जाते? कितने दिन हो गए, कहीं घूमे भी नहीं!”
मास्टर साहब ने अखबार से नज़र हटाते हुए सहजता से कहा,
“ठीक है, आज रात बाहर खाना खाएँगे।”
“पर किसी छोटे होटल में नहीं!” अनीता ने स्पष्ट किया, “इस बार किसी फाइव स्टार होटल में चलेंगे।”
मास्टर साहब एक पल के लिए चुप हो गए, जैसे दिमाग में कुछ गणनाएँ कर रहे हों। फिर बोले,
“ठीक है, तैयार रहना। शाम सात बजे निकलते हैं।”
शाम को दोनों कार में सवार होकर निकले। रास्ते में मास्टर साहब ने बातों-बातों में कहा,
“तुम जानती हो अनीता? एक बार मैंने अपनी बहन के साथ पानीपुरी की प्रतियोगिता की थी। मैंने 30 खाईं और जीत गया था।”
“क्या इसमें बड़ी बात है?” अनीता ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं तो आपको आराम से हरा सकती हूँ।”
“तो फिर चलो,” मास्टर साहब ने उत्साह से कहा, “आज फाइव स्टार होटल से पहले एक पानीपुरी प्रतियोगिता हो जाए। देखते हैं कौन जीतता है।”
थोड़ी ही देर में दोनों एक मशहूर पानीपुरी ठेले पर रुके। प्रतियोगिता शुरू हुई। एक-एक करके गोलगप्पे अंदर जा रहे थे। भीड़ भी जुटने लगी।
25 पानीपुरी के बाद मास्टर साहब ने धीरे से सांस ली और बोले,
“बस! मेरा पेट भर गया।”
अनीता के लिए भी यह आखिरी सीमा थी, पर पति को हराने का जोश इतना था कि उन्होंने एक और पानीपुरी खा ली और विजयी भाव से बोलीं,
“देखा! मैं जीत गई।”
ठेले वाले ने मुस्कुरा कर कहा,
“बिल 100 रुपये हुए, साब।”
मास्टर साहब ने पैसे चुकाए और बोले,
“अब चलो, फाइव स्टार होटल चलते हैं खाना खाने।”
पत्नी पेट पर हाथ रखकर बोलीं,
“अब तो पेट में एक निवाला भी नहीं जाएगा। चलो घर।”
दोनों वापस घर लौट आए। रास्ते भर अनीता अपनी जीत से बहुत प्रसन्न थीं।
लेकिन मास्टर साहब के चेहरे पर एक मृदु मुस्कान थी – एक अध्यापक की मुस्कान, जिसने बिना झगड़े, बिना बहस, बिना खर्चे के, एक शिकायत को हल कर दिया था।
सच्चा शिक्षक वही है, जो जीवन की कक्षा में भी बुद्धिमता से हर समस्या का समाधान ढूंढ ले।
कम खर्च, ज्यादा संतोष – यही होती है एक अच्छे अध्यापक की असली योग्यता।
समाप्त —