रामकुमार मौर्य
रामनगर बाराबंकी संदेश महल
क्षेत्र में सैकड़ो की संख्या में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। बहुत से ऐसे सेंटर है,जिनका आज तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है और खुलेआम बोर्ड लगाकर कोचिंग सेंटर चलाए जा रहे हैं। इन कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों को कामयाबी बहुत कम मिल पाती है। जबकि तैयारी को लेकर इन सेंटरों पर बच्चों से अच्छी खासी फीस ली जाती है। लेकिन समय आने पर प्रतियोगिता में उनका रिजल्ट जीरो आता है ।बहुत से ऐसे विद्यालय हैं, जो स्वयं बच्चों को कोचिंग पढ़ा रहे हैं और उनके अभिभावकों से मनमाने ढंग से फीस के नाम पर पैसा वसूली की जा रही है ।बोर्ड में ऐसी कोई प्रतियोगिता नहीं है जिसके बारे में अंकित न हो ।लेकिन जब इन सेंटरों पर कोई बच्चा प्रवेश ले लेता है तो उसे हर माह फीस के नाम पर पैसा जमा करना पड़ता है। लेकिन जब किसी प्रतियोगिता में बच्चा भाग लेता है तो उसे लाभ नहीं मिलता है। इसके अलावा बहुत से स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर अध्यापकों द्वारा दबाव बनाया जाता है कि आप कोचिंग पढ़ें नहीं तो आप फेल हो जाएंगे। अभिभावकों का कहना है कि इस प्रकार से बच्चों पर दबाव बनाकर कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलाया जा रहा है ।वहीं अध्यापक जो कॉलेज में गणित का सवाल नहीं हल कर पता है। वह इन सेंटरों में पहुंचकर बच्चों को कोचिंग पढ़ा रहा है। गणित, अंग्रेजी व विज्ञान विषय का अध्यापक बनकर बच्चों को पढ़ा रहा है ।क्योंकि ऐसे अध्यापक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं। जितना कोचिंग पढ़ने वाले बच्चों को मन लगाकर पढ़ाते हैं। जबकि शिक्षा विभाग में कार्यरत सभी अध्यापक योग्य और अनुभवी हैं। लेकिन कॉलेज में यह लोग पढ़ाना नहीं चाहते हैं। अगर स्कूलों में अच्छी पढ़ाई हो तो बच्चों को कोचिंग सेंटर जाने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि इस समय जो भी अध्यापक शिक्षा विभाग में आ रहे हैं व शिक्षण कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं। जबकि इन अध्यापकों की बच्चों से जान पहचान विद्यालय से हुई है और इन्हें इस कार्य के लिए कॉलेज में पढ़ने के लिए वेतन भी मिलता है।
जिससे पूरे परिवार का पालन पोषण चलता है। जिस संस्था से यह लोग वेतन लेते हैं, उसमें कार्य करने में हीला हवाली क्यों करते हैं। इसका क्या कारण है, जबकि शिक्षण कार्य के लिए सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। वह चाहती है कि गांव से लेकर शहर तक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिले। लेकिन जिन लोगों के कंधे पर इसका भार दिया गया है। वे लोग अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। अगर इसी प्रकार एक पढ़ा लिखा व्यक्ति बच्चों के साथ धोखाधड़ी का काम करता रहेगा तो उसे ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा। क्योंकि जिन विद्यालयों में विद्यार्थी पढ़ते हैं वह एक शिक्षा मंदिर है। इस मंदिर की देखरेख करने वाला व्यक्ति अगर कभी लापरवाही करेगा तो मंदिर में बैठे ईश्वर उन्हें माफ नहीं करेंगे। क्योंकि इस मंदिर द्वारा उनके परिवार का पालन पोषण होता है। अगर मेहनत से कमाया गया पैसा किसी कार्य में लगाया जाता है तो वह सार्थक होता है और आपको शिक्षक का पद इसीलिए मिला है कि आप लोग इन नन्हे मुन्ने बच्चों को उच्च शिखर पर अवश्य पहुंचा दें। जिससे आपके विद्यालय गांव और देश का नाम रोशन हो सके। क्योंकि कहा गया है कि बच्चे भगवान के स्वरूप हैं। इन्हें जो धोखा देता है, वह व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं रहता है।