बाराबंकी संदेश महल
उन्नाव की शिक्षिका कवि दीपा पटेल को कविता लिखने का शौक है।उनकी कविताएं यथार्थवादी होती है जो समाज को कुछ न कुछ शिक्षा देती रहती है । अब तक तमाम कविताए उन्हीने लिखी जिनकी खूब प्रशंसा हुई । उनकी पिता पर लिखी कविता में दर्शाया गया है कि पिता बच्चों के बचपन से लेकर युवा होने तक जिम्मेदारी निभाते हुए अपनी ख्वाहिशों को पीछे कर बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करता है । पिता पर लिखी इस कविता की खूब सराहना हुई है।
शिक्षिका कवि दीपा पटेल
बेशक वो मुझसे कम बोलते है, पर मेरे दुख में तो वो भी दुखी होते है, और पता है कभी – कभी मैं , बातें तो तुझसे सारी बता नही पाती, पर वो तो सब बिन कहे ही समझते है, भले माँ मुझे हो सबसे प्यारी, पर तुझमे तो मेरा खुदा बसता है, बेशक वो मुझसे कम बोलते है, पर मेरे दुख में तो वो भी दुखी होते है, कभी- कभी जब कोई नही समझता है हमें , तो बस वो ही है जो किसी भी परिस्थिति में, हमें दुनियाँ की नजरों की तरह नही तौलते है, और एक वो ही है, जिसकी छांव, में बस सुकून झलकता है, बेशक वो मुझसे कम बोलते है, पर मेरे दुख में तो वो भी दुखी होते है, बचपन में चाहे घोड़ा बनना हो व, माँ की डाँट से बचाना सब, वो बिन कहे ही करते है और, बड़े होने पर पढ़ाई से लेकर, ख्वाबों को भी मेरे साथ वो भी जीते है, हमेशा अपनी ख्वाहिशों को पीछे रख, सारी खुशियों को पहले कदमों मे बिछाते है, बेशक वो मुझसे कम बोलते है, पर मेरे दुख में तो वो भी दुखी होते है…. उनकी एक अन्य कविता ‘बदलाव’ भी पाठकों को कुछ नया संदेश देते हुए अच्छाई की ओर चलने की प्रेरणा दे रही है। कहते है बदलाव जरूरी है, तो चलो करे ऐसा बदलाव , जो समाज को ले जाए, नयी दिशा की ओर, अज्ञानता से ज्ञान की ओर, राजनीति से सबके विकास की ओर, बदलाव करे हम ऐसा, जो ले जाए, पराधीनता से स्वाधीनता की ओर, स्त्री – पुरुष के समानता की दिशा की ओर, बदलाव रूढ़ियों के पतन का, बदलाव ज्ञान के प्रसार का, बदलाव करे हम ऐसा, जो नई श्रृष्ठि का सृजन करे, जाति- पाति के भेद मिटा समभाव के भाव का, गलत के खिलाफ लड़ने की दिशा की ओर, प्रकृति के प्रति प्रेम व लगाव का, संस्कार को जीवित रखने की ओर, बदलाव करे हम ऐसा, जो हो स्वार्थ से परमार्थ की ओर, जीवित रखे जो राम – कृष्ण के भाव, हम सबके मन के अंदर, चलो करे हम ऐसा बदलाव जो, खुद को खुद की ही नजरो में, खड़ा रखने की ताकत दे, चलो करे हम ऐसा बदलाव….