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वृंदावन भक्ति वेदांत मंदिर में स्थापना का प्रथम वार्षिकोत्सव प्रारंभ

रिपोर्ट
प्रताप सिंह
मथुरा संदेश महल समाचार

भक्ति वेदांत मंदिर सुनरख रोड स्थित परिसर में मंदिर स्थापना के प्रथम वार्षिकोत्सव प्रारंभ हुआ, जिसमें अनेक ख्यातीलब्ध संत व कथाकार पहुंचे जहां उन्होंने मंदिर में स्थापित विग्रहों की पूजा अर्चना की तत्पश्चात हनुमत आराधन मंडल द्वारा प्रस्तुत सुंदरकांड पाठ में सम्मिलित होकर शाम 2:00 बजे से प्रारंभ हुई अनंतानंद पीठाधीपति परम पूज्य जगद्गुरु स्वामी राम कमल दास वेदांती जी महाराज जी की कथा में शामिल हुए ।

कथा प्रारंभ से पूर्व दीप प्रज्वलन श्री पीपा पीठाधीश्वर जगतगुरु द्वारा चार्य आचार्य बलराम दास जी महाराज जी, सुदामा कुटी पीठाधीश्वर सुतिक्षण दास जी महाराज, भागवताचार्य मनोज मोहन शास्त्री जी ने किया, श्री रामकथा सत्र आरंभ करते हुए मलूक पीठाधीश्वर परम पूज्य राजन दास जी महाराज जी ने अगहन माह की विशेषता का वर्णन करते हुए कहा कि श्री सीताराम जी के पाणि ग्रहण संस्कार भी इसी माह में हुए है। बांके बिहारी जी का प्राकट्य माह भी यही है। अद्भुत है। वृंदावन की रज में बैठकर श्री राम कथा का श्रवण करना स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी भी वृंदावन में भगवान श्रीराम व भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद निहारा करते थे और भगवान राम की अद्भुत भक्ति को गाया करते थे ।
प्रसिद्ध कथा वाचक श्यामसुंदर पाराशर ने कहा कि पूज्य स्वामी वेदांती जी महाराज ने वृंदावन में भक्ति वेदांत मंदिर का स्थापना कर अनेक साधकों के हित में कार्य किया ह यह मंदिर आगामी समय में साधना स्थली के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर जाएगी।
कथा आरंभ करते हुए स्वामी वेदांती जी महाराज जी ने वर्णानामर्थ संघानां रसानाम का अर्थ करते हुए कहा कि तुलसीदास जी ने सभी वर्णों को, सभी रसों को, सभी देव को, सभी छंदों को, वाणी को अर्थो को सजाने वाले गणेश जी व सरस्वती जी को प्रणाम करते हुए अपना कार्य आरंभ करते हैं और दो अक्षर का नाम जो राम है। उसका आलंबन ग्रहण करते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि वंदन से भगवान बधते है। गोस्वामी तुलसीदास जी इस तथ्य से भलीभांति परिचित है। इसलिए उन्होंने रामचरितमानस के रूप में कथा की अमर गाथा का प्रणनयन वंदना से किया। गोस्वामी जी इतिहासकार नहीं बल्कि भक्ति के परमाचार्य है। और ऐसे में उनकी कृति भगवान राम की साधारण कथा ना होकर भगवान राम और उनके परिकर का चिन्मय चैतन्य समुच्चय है ।
स्वामी जी ने बताया कि इतिहास लेखन में त्रुटि हो सकती है। इतिहास को परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। कोई भी नवीन शोध और नई निष्पत्ति इतिहास की मान्यता में परिवर्तन की कारक हो सकती है। पर गोस्वामी जी जैसा जब कुछ रचता है। तो वह पूर्ण प्रमाणिक एवं शास्त्रीय बनकर प्रस्तुत होता है। इसलिए रामचरितमानस लाखो वर्ष पुराने प्रसंग का अत्यधिक प्रमाणिक साक्ष्य है। और इसमें रामकथा की परिपूर्णता नियोजित होने के साथ-साथ मानवीय समस्याओं का समुचित समाधान संयोजित है।
संस्था सचिव पंडित राम भरत शास्त्री ने बताया कि प्रतिदिन विद्वत गोष्ठी, संत सम्मेलन, विदुषी सम्मेलन भंडारे आदि का कार्यक्रम अनवरत 23 दिसंबर तक चलेगा, इसमें देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आए हुए है। ।कोरोना काल का विधिवत पालन पूर्वक व्यवस्था चल रही है। जिसमे गीत संगीत भी प्रतिदिन सायं में चलेंगे।