सर्पों की अदालत के लिए सुप्रसिद्ध बाराबंकी का यह गांव

 

नाग जाति का इतिहास भारत के प्राचीन गौरव का प्रतीक है। भारतीय जनमानस में नाग से जुड़ीं कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन इनमें कितनी सच्चाई है यह भी आज भी खोज का विषय बना हुआ है। इंसानों और सांपों के बीच अटूट रिश्ते का प्रतीक मजीठा गांव में लगने वाला नाग मेला पर एक खास पेशकश- रिपोर्ट जयप्रकाश रावत

गुरु पूर्णिमा पर विशेष-

जयप्रकाश रावत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सीमावर्ती जनपद बाराबंकी गौरवशाली प्राचीन धरोहरों को आदि काल से समेटे हुए है। इस परिधि में स्थित एक ऐसा मंदिर है,जहां जहरीले सर्पों की अदालत लगती है। इन दिनों भांति-भांति के सर्प इकट्ठा होते हैं। और सपेरों का हुजूम इकट्ठा होता है। इतना ही नहीं सच्ची श्रद्धा व सच्चे मन से मांगी गई मनवांछित मुराद भी पूरी होती है।

नाग देवता मंदिर

आज आषाढ़ की गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ रहा है। आस्था से ओतप्रोत श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सांपों से परेशान व्यक्ति को सांपों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही कई तरह के रोग भी मंदिर में मन्नत मांगने से ठीक हो जाते हैं।नाग देवता मंदिर में दूध,चावल चढ़ाया जाता है। इसके बावजूद आप अगर किसी बीमारी से परेशान हैं तो आपको यहां मिट्टी की बनी छोटी-छोटी मठिया चढ़ानी होगी। ऐसी भी आस्था है कि मंदिर में स्थित मठ पर मिट्टी की भुड़कियां चढ़ाने के बाद इनको घरो में रखने से न तो घर के अंदर सांप और न ही जहरीले जीव जंतु आएंगे। यहां इंसानों और सांपों के बीच अटूट रिश्ता है। मजीठा गांव के घरों में अक्सर सांप निकलते रहते हैं। वह इन घरों में निवास करते हैं, लेकिन किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और न ही इंसान ही उनको मारते हैं। यहां लोग सांपों को दूध पिलाते हैं,उनको देखते ही हाथ जोड़कर पूजा अर्चना करते हैं। वहीं, नाग देवता उनको कभी कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते, बल्कि उनकी हर परेशानी को दूर कर देते हैं।


जिला बाराबंकी की तहसील नवाबगंज से मात्र छह किलोमीटर दूर मंजीठा नाग देवता मंदिर स्थित है। जहां हर वर्ष सावन के महीनों में भव्य मेला लगता है और ये मेला आज से शुरू हो गया है। नाग देवता के दर्शन के लिए न सिर्फ बाराबंकी जिला बल्कि अन्य प्रदेशों के जिलों से लोग यहां आते हैं। सावन के महीने में यहां भीड़ लगी रहती है।

नाग देवता मंदिर मंजीठा धाम का इतिहास

किंवदंती प्रचलित है कि प्राचीन समय में मन्दिर स्थान पर मंजीठ नाम के पेड़ बहुसंख्यक थे। पेड़ो में मंजीठ नाम के पेड़ से एक रंग व औषधि प्राप्त होती थी।इन पेड़ों की वजह से मंजीठ से नाम मजीठा पड़ गया।यहाँ पर विशाल घना जंगल होने के कारण कुछ दिखाई नहीं देता था ।एक बार की बात है एक दिन गाँव में किसी की गाय जंगल में चली गई और बहुत देर बाद गाँव नहीं आई तो गाँव वाले हिम्मत जुटा कर जंगल में गाय खोजने गए।जब गाँव वाले पहुचे तो यह देखा की गाये सरोवर (तालाब) में स्नान कर रही है। और एक संत सरोवर (तालाब) के किनारे तपस्या में लींन है। गाँव वाले गायो को लेकर अपने गाँव वापस आ गए और सब गाव वाले मिलकर संत को गाँव में आदर सत्कार के लिए बुलाने के लिए सोचा और सब चल पड़े संत के पास जाकर घर आने का प्रस्ताव रखा। संत ने प्रस्ताव मना कर दिया और वे गाँव नहीं गए। तब संत ने कहा की अगर आदर सत्कार करना ही है तो नाग देवता का करो वे कई वर्षो से यहाँ इस बांबी (छोटा सुरंग) में विराजमान है । और बगल में पुरनिया (तालाब) है उसमे स्नान करके नाग देवता को श्रद्धा पूर्वक मिटटी के बर्तन में दूध और चावल चढ़ा दें आप सबका कल्याण होगा और सबसे विशेष बात यह है की आज असाढ़ की गुरु पूर्णिमा है कितना पावन दिन है और विशेष बात है की यहाँ पर व्यक्ति सर्प विषमुक्त हो जायेगा।संत की बातो को सब गाँव वालो ने सम्मान करते हुए वैसा ही किया। तब से ही असाढ़ की गुरु पूर्णिमा को उत्सव के रूप में मेला लगता है।और वे संत नागा पंथ के थे इसलिए उन्हें सब नागादास बाबा कहने लगे। तथा कुछ वर्षो बाद संत ब्रम्हलीन हो गए उनकी समाधि वहीँ बना दी गयी।तभी से यह प्रथा श्री नाग देवता मेला मंजीठा धाम के रूप में प्रतिवर्ष मानते है।