यूपी में एक ऐसा स्थल जहां भाई बहन बन जाते हैं पति-पत्नी

 

रिपोर्ट
जेपी रावत
संदेश महल समाचार

विश्व साक्षात्कार,ग्रंथों,पवित्र स्थानों, भविष्यवाणियों,नैतिकता या संगठनों का एक सामाजिक-सांस्कृतिक तंत्र है,जो मानवता को अलौकिक,पारलौकिक और आध्यात्मिक तत्वों से संबंधित करता है।इस बात पर कोई विद्वता सर्वसम्मति नहीं है कि वास्तव में एक धर्म क्या है विभिन्न धर्मों में दैवीय,पवित्र चीजें,विश्वास से लेकर विभिन्न तत्वों तक विभिन्न मत है।

इस स्थल पर भाई बहन जाने से प्रतिबंधित

जो जीवन के बाकी हिस्सों के लिए आदर्श और शक्ति प्रदान करते हैं। बात करते हैं भारत की तो भारत पर्वों, व्रतों, परम्पराओं और रीति-रिवाजों का देश है। यहां शायद ही ऐसा कोई महीना बीतता हो जिसमें कोई व्रत या पर्व न पड़ता हो। हमारे पर्वों में सबसे अलग बात यह होती है कि इन सबमें हमारा उत्साह किसी न किसी आस्था से प्रेरित होता है। कारण कि भारत के अधिकाधिक पर्व अपने साथ किसी न किसी व्रत अथवा पूजा का संयोजन किए हुए हैं। इसी कड़ी में भारत का प्रदेश उत्तर प्रदेश का एक जिला जालौन में एक ऐसा स्थल है जो अपनी विचित्र परम्परा के लिए विख्यात है। इसी जनपद अंतर्गत स्थित लंका मीनार में आज भी भाई-बहन का एक साथ जाना प्रतिबंधित है।माना जाता है कि अगर भाई-बहन यहां एक साथ गए तो मान्यता के अनुसार वो पति-पत्नी माने जाते हैं।एक साथ जाने पर क्यों बन जाते हैं पति-पत्नी, जानें रहस्य
देश में धार्मिक स्थलों की अलग-अलग मान्यताएं हैं।कई जगह ऐसी भी हैं जिनकी मान्यताएं विचित्र भी हैं।ऐसी ही एक जगह जालौन से जुड़ी हैं जो आपको कुछ पल के लिये सोचने पर मजबूर कर देगी।हमारा देश संस्कृति की पहचान के लिए पूरे विश्व में अपनी ख्याति मशहूर है, लेकिन जिला जालौन में कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य छुपे हुए हैं जिनके बारे में जानकर आप भी आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
जालौन के कालपी की एक ऐसी ही एक मीनार है जिसे लंका मीनार के नाम से भी जाना जाता है। कालपी की यह मीनार लगभग 210 फीट ऊंची है। मीनार का निर्माण वकील बाबू मथुरा प्रसाद निगम ने कराया था।200 साल से ज्यादा पुरानी इस मीनार की अजीब मान्यताएं हैं।मान्यताओं के मुताबिक,लंका मीनार में भाई-बहन एक साथ नहीं जा सकते हैं। दरअसल, मीनार के ऊपर तक जाने के लिए सात परिक्रमाओं से होकर गुजरना पड़ता है। हिंदू धर्म के अनुसार भाई-बहन के द्वारा ये नहीं किया जा सकता।क्योंकि सात परिक्रमाओं का संबंध पति-पत्नी के सात फेरों के रिश्तों की तरह माना जाता है।इसी वजह से लंका मीनार के ऊपर भाई-बहन का जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। मंदिर के ठीक सामने शिव जी का मंदिर हैं जिसमे सैकड़ो मूर्तियां विराजमान हैं। लंका मीनार के इतिहास के संबंध में इतिहासकारों के अनुसार लगभग 200 वर्ष पुराना है। यह दिल्ली की कुतुब मीनार के बाद की दूसरी ऊंची मीनार है। इसका निर्माण गुड़, दाल,कौड़ी व अन्य सामग्रियों से हुआ है।

लंका मीनार

लंका मीनार

भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह यमुना के दाहिने किनारे पर है। यह कानपुर के 78 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है, जहां से यह सड़क और रेल दोनों से जुड़ा हुआ है। शहर को 1803 में ब्रिटिशों द्वारा कब्जा कर लिया गया था, और 1806 के बाद 1947 में भारत की आजादी तक ब्रिटिश कब्जे में रहा । कालपी 1811 में गठित बुंदेलखंड एजेंसी का हिस्सा था, और 1818 से 1824 तक अपने मुख्यालय को रखा गया। इस अवधि के दौरान भारत के गवर्नर जनरल को राजनीतिक एजेंट कालपी में नियुक्त किया और मुख्यालय बनाया गया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे “वाणिज्यिक निवेश” प्रदान करने के लिए अपने प्रमुख स्टेशनों में से एक बना दिया। मई 1858 में ह्यूग रोज (लॉर्ड स्ट्रैथनेरन) ने झांसी की रानी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की एक सेना को यहां हराया। जालौन राज्य के शासकों के पूर्व निवास,कालपी की पद 1860 में अंग्रेजों द्वारा बंद कर दी गई थी और इसकी जगह व्हाइटगंज नामक बाजार द्वारा ले ली गई थी। व्यास मंदिर, लंका मीनार, 84 गुंबज और साराद मीर तिर्मजी के दरगाह खानकाह जैसे कई दरगाह जैसे दौरे के लिए कई जगहें हैं। कालपी वेद व्यास जी का भी जन्मस्थान है। बेरबल की एक काली हवेली और रंग महल है जिसे रंग महल कहा जाता है।

रेलवे- कालपी उत्तर मध्य रेलवे

कानपुर-झांसी रेलवे खंड का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। रोडवेज- कालपी राष्ट्रीय राजमार्ग के कानपुर-झांसी खंड पर एनएच 27 पर स्थित है।

कालपी बस स्टेशन

यूपी एस आर टीसी बसों द्वारा कानपुर,झांसी और उरई के शहरों से जुड़ा हुआ है।

एयरवेज

निकटतम हवाई अड्डा चकेरी 90 किलोमीटर दूर कानपुर में है, जिसमें दिल्ली, मुंबई और वाराणसी की उड़ानें हैं,भारत के कुछ अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ने की उम्मीद है।