विजयदास महाराज के अस्थि कलश के दर्शनों को उमड़े ब्रजवासी

रिपोर्ट /- प्रताप सिंह मथुरा संदेश महल समाचार

ब्रजभूमि के पौराणिक पर्वतों की रक्षा के लिए आत्मदाह करने वाले सन्त विजयदास महाराज के अस्थि कलश को उनकी कर्मस्थली पसोपा गांव में समाधि दी गई। उनके अस्थि कलश के साथ एक शोभायात्रा बरसाना स्थित माताजी गोशाला से शुरू होकर विभिन्न स्थानों से होती हुई पसोपा पहुंची। सन्त के अस्थि कलश के दर्शन करने के लिए रास्ते भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा।
शुक्रवार को बरसाना की माताजी गोशाला से सन्त विजयदास महाराज का अस्थि कलश राजस्थान के गांव पसोपा ले जाया गया। कलश के साथ शुरू हुई शोभायात्रा में गोशाला से सर्वप्रथम गह्वर कुंड पर पहुंची।

इसके बाद बरसाना, प्रिया कुंड, सुनहरा, पाछौल, कदम्बखण्डी, कामां के विमल कुंड व गया कुंड, केदारनाथ तथा आदिबद्री होते हुए पसोपा पहुंची। रास्ते भर लोग सन्त के अस्थि कलश के दर्शन के लिए उमड़ते रहे। कई स्थानों पर लोगों ने शोभायात्रा पर पुष्पा वर्षा की तथा सन्त को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। मार्ग में पड़ने वाले सभी जल कुंडों के जल को कलश पर छिड़का गया। अंत में पसोपा में सन्त विजयदास को समाधि दी गई। इस अवसर पर मान मन्दिर सेवा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष राधाकांत शास्त्री, सचिव ब्रजदास (सुनील भैया), फौजी बाबा, शंभु बाबा, भक्त शरण, राजकुमार, पूर्व विधायक अनिता सिंह, पूर्व विधायक गोपी गूजर, जिला पंचायत सदस्य संजय सिंह आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

1998 से चल रहा है पर्वतों की रक्षा का अभियान
मान मन्दिर के सन्त रमेश बाबा के नेतृत्व में ब्रज की अमूल्य धरोहर रूपी इन दिव्य पर्वतों की रक्षा के लिए सबसे पहला अभियान वर्ष 1998 में चलाया गया था। उस समय उत्तर प्रदेश में स्थित पर्वत भी खनन के शिकार थे। रांकोली व नाहरा के पर्वत तक खोदे जा रहे थे। स्थानीय लोग भी अपने स्तर से खनन करते थे। इस दशा में रमेश बाबा एक तरफ स्थानीय लोगों को तो दूसरी तरफ प्रशासन को इन पर्वतों की महत्ता समझाते थे। वर्ष 2000 में जब रमेश बाबा अनशन पर बैठे तो उनके प्रयास रंग लाने शुरू हुए और अष्ट गिरी पर्वत, नाहरा व रांकोली के पर्वत खनन से मुक्त हो गए। सन 2002 में कलावटा, वर्ष 2003 में सेऊ, 2004 में घाटा, 2005 में खनन के लिए लीज पर दी गई 16 खदानों की लीज निरस्त कराई, 2006 में बोलखेड़ा, 2007 में कामां, 2008 में कामां व डीग तहसीलों के 5253 हेक्टेयर क्षेत्र को खनन रुकवाकर वन विभाग के सुपुर्द कराने में सफलता पाई। 2011 में सुरवारी, महराना व भड़ोकर में संचालित मिनी क्रेशर व चक्कियों को बन्द कराया। 2012 में कनकाचल व आदिबद्री के मंदिर पर धरना दिया गया तथा खनन विभाग को प्रस्ताव भेजा। परन्तु उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। वर्ष 2014 में एकबार फिर प्रस्ताव भेजा गया। वर्ष 2017 में गढ़ी मुआपुर नांगल में 47 दिन तक धरना प्रदर्शन किया गया। 2021 में गांव पसोपा व उसके पास के पांच गांवों में लोग धरने पर बैठे। अक्टूबर 2021 में मुख्यमंत्री को प्रस्ताव दिया गया। पर यह मामला नौ माह तक लंबित रहा। अंत में विजयदास महाराज के बलिदान के बाद यह क्षेत्र वन विभाग को सौंप दिया गया।