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……….. लेकिन अपने गांव जरूर जाइए?

 

हिमांशु यादव
मैनपुरी संदेश महल समाचार

बैठ जाते हैं अपने पराये साथ बैलगाड़ी में,
पूरा परिवार भी ना बैठ पाये उसे तू कार कहता है।

देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गावों में रहता है, लेकिन आज के दौर में लोग बेतहासा गांव से शहरों की तरफ भागे चले आ रहे हैं. रोज़मर्रा की ज़रूरतों ने लोगों को इस कदर मजबूर किया है कि शहरों की तरफ आती रेलगाड़ियां ठसाठस भरी दिखाई देती हैं. लेकिन जब भी बात जीवन और खुशहाली की होती है,तो लोग गांवों को ही याद करते है।

गांव ही है जो आपको बतलाता रहेगा कि आप कहाँ से चले थे और कहाँ आ गये हैं।धन और विलासिता के मद में अपने सुख का दहन कर चुके इंसान को, ये गांव ही है जो असीम शांति देता है। शहरों की थकान और शोर भरी जिंदगी से जब आप कहीं दूर भाग जाना चाहते हैं तो ये गांव ही है जो हर रूप में आपको दुलराता है।औपचारिकताओं के पैबंदों में लिपटे हुए रिश्तों से जब आपको खीझ होने लगे, तब ये गांव ही है जो आपको एक वास्तविक दुनिया दिखलाता है जहाँ जो है, वास्तविक है।सद्भावना के गुच्छों में सिमटी हुई बातें कि मदद के नाम पे जब दिलासा मिले और समय आने पर जब बातें प्रोफेशनल बन पड़े,तब ये गांव ही है जो अपनी दोनों बाहें फैलाकर आपको आलिंगन देता है।गांवों में खूब लड़ाइयां देखीं गयीं.. चुनावों में बात गोलियों और गालियां तक पहुंच गईं.. नालियों के झगड़ों में रपट तक लिखा दी गयी…, लेकिन ये गांव ही है जहाँ बस मतभेद दिखता है.. मनभेद नहीं।आवश्यकताओं में या मुसीबतों में, लोगों में स्टैंडर्डनेस का वो भूत नहीं है कि कष्ट में कराहते पड़ोसी को देखकर मुंह फेर लें।शहरों की वो जिंदगी कि पड़ोसी की लाश से दुर्गध आने पर ही उसके होने का अहसास हो..गांवों में आप एक नज़र से पूरा भारत देख सकते हैं। अतीत के बारे में हम अपने बच्चों को बतायेगें कि हमारी अम्मा उस आम के पेड़, के बारे में कैसे बताती थीं।