तो मैं क्या क्या ढकूं……………..?

प्रस्तुतकर्ता – संदेश महल

वासना है तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं,
तू ही बता क्या करूं के चैन की जिंदगी जी सकूं।।

साडी पहनती हूं तो तुझे मेरी कमर दिखती है
चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है।।

दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाउ मै।
कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाउ मैं ।।

पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है।
क्या क्या छुपाउ तुमसे
तुम्हारी तो मेरे झूमके को देख के बहकती जवानी है।।

घाघरा चोली पहनू तो सीने पर तुम्हारी नजर टिकती है,
पीछे से देखो तो मेरे back पर तेरी आंखे सटती है ।।

केश खोल के रखू तो वो भी बेहयाई है।
क्या करे
तेरी निगाहों मे समायी काम परछाई है।।

हाथो को कगंन से ढक लूं चेहरे पर घुंघट का परदा रखलूं

किसी की जागिर हूं दिखाने के लिए अपनी मांग भरलूं।।

पर तुम्हे क्या परवाह मैं
किसकी बेटी किसकी पत्नी किसकी बहन हूं।
तुम्हारे लिए तो बस
तुम्हारी वासना को मिलने वाला चयन हूं।।

सिर से पांव के नख तक को छुपालूंगी
तो भी कुछ नहीं बदलेगा,
तेरी वासना का भूजंग तो नया बहाना
बनकर के हमें डस लेगा।।

साभार फेसबुक