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……कश्ती भी है जर्जर ये कैसा सफर है?

अलग ही मजा है फकीरी का अपना?
न पाने की चिन्ता न खोने का डर है?

जेपी रावत
संपादक
संदेश महल समाचार

न माझी न हम सफर न हक में हवाये?
कश्ती भी है जर्जर ये कैसा सफर है?

 

लोगों को सुनाने के लिये अपनी आवाज उची मत करीये।अपने आप को इतना ऊँचा बनाईये की लोग आप की आवाज को सुनने के लिये इन्तजार करें।यह भी सच है। कि अपने किरदार को मौसम से बचाये रखना लौटकर आता नहीं फूल से निकला खुश्बू।हालात हर दम पक्ष में नहीं रहता इन्सान वही होता है लेकीन जिन्दगी की परीक्षाा में हरदम दक्ष नही होता।वक्त बदलता है। कदम कदम पर बुद्धिमान सम्हल कर चलता है। फीर भी जीवन की सफलता के लिये आहे भरता है।हर कदम पर ङरता है।

भाग्य भरोशे ख्वाबी महल बनाने वाले कब जीवन की दहकती दरिया में सफलता की कश्ती से पार हो पाये हैं।सफलता की कश्ती कुशलता के साथ वही किनारे लगा पायें है जो झंझावाती लहरों से खेलकर तूफानो से लड़कर मंजिल पाये है।इतिहास उन्ही का लिखा जाता जो बहादुरी के साथ मतलब परस्ती को ठोकर मार कर सामंजस्य के संगम में गोता लगाते है।दुनियाँ को अपनी पहचान बताते है।उनके लिये न कोई घर है।न किसी से उनको डर है। बदलते परिवेश में बदलाव की हवा जिस तरह जोर पकड़ रही है। उसमे परिवर्तन फीर पुरातन ब्यवस्था मे आस्था समाहित करने लगा है। मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक का सफर वापस होकर फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना बदलाव की हकीकत को साबित कर रहा है। पहले अंगूठा की छाप से सब कुछ बन जाता था बिगड़ जाता था। जब बदलाव हुआ तो सीगनेचर महत्व पूर्ण हो गया। आज फीर एक बार हर कार्य अंगूठा के छाप पर ही आकर ठहर गया है। कभी फटा पुराना कपड़ा जीवन का मूल आधार मजबूरी में था।लेकीन आज फैसन परस्ती मे साफ सुथरे और अच्छे कपड़ों तथा अपनी पैंटें फाड़ कर लोग आधुनिक बन रहे है।जो हमारी कभी मजबूरी थी वही आज फैसन में जरूरी है।कभी सूती की तूती बोलती थी फिर टैरीलीन, टैरीकॉट आ गया लेकीन महज कुछ सालो मे ही फिर सूती पर ही वापसी हो गयी।सूती महत्वपूर्ण हो गया।खेती किसानी को छोङकर गाँव से मुह मोड़कर आधुनिकता की चपेट मे आकर लोग नौकरी के तरफ भागने लगे।लेकीन समय बदल गया अब लोग पढ लिखकर फिर खेती के तरफ आ रहे है।आर्गेनिक खेती को ई महत्वपूर्ण बना रहे है।पुराने मोटे अनाज को इस्तेमाल ना करके हर सामान जीन्स ब्रांडेड चाहते थे मोटे अनाज छूते तक नही थे।अब महंगे कीमत पर मोटे अनाज तलाश रहे है।खरीद रहे है। खा रहा है। फास्ट-फूड से दूरी बना रहे है। कभी गाँव की ब्यवस्था से आस्था तोङकर शहरों मे पलायन करने वाले आधुनिक लोग अब शान्ती की खोज में गावों के तरफ आने लगे है। गाँव,जंगल,गौशाला छोङकर डिस्को पब और शहरों की चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ फिर से मन की शाँति एवं स्वास्थ्य के लिये शहर से जंगल,गाँव व गौशालाओं की ओर आने लगी है।यह सारा बदलाव महज सौ साल के भीतर ही होकर जलवा दिखा रहा है।आधुनिकता के बहाव मे कंकरीट के जंगल मे मंगल की कामना से बसेरा बनाने वाले अब अमंगल की बात करने लगे है।बर्तमान आवरण मे टेक्नॉलॉजी ने हमें जो दिया उससे बेहतर तो प्रकृति ने हमें पहले से दे रखा था।हमारे सनातनी पूर्वजो ने धर्मानुसार आचरण और व्यवहार अपने जीवन में अपनाया और सुखपूर्वक अपना जीवन जिया‌। मगर हम आज प्रकृति और सनातनी परंपराओं से विमुख हो आचरण कर रहे है। उसके भयंकर दुष्परिणाम भी सामने है। प्राकृतिक वातावरण से बिमुख होने का दुष्परिणाम दुनियाँ भुगत रही है।आधी उम्र मे ही रोग के अवरोध से शाररिक बिरोध का दर्द झेलते हुये बर्बादी का मंजर देख रही है। सनातनी पुरातन ब्यवस्था में आस्था रखने वाले आज भी मुस्कराते जीवन के पथ पर दुनियाँ में मिसाल कायम कर सुखी जीवन ब्यतीत करते हुये इस सदी का अमिट इतिहास लिख रहे है। योग सन्यास ब्रत उपवास का उपहास करने वालों के सामने बर्तमान प्रर्यावरण का उदाहरण बन गये।कोई नौ दिन निम्बू पानी पर तप करता है।कोई प्रतिदिन सादगी में बिन बिछावन काठ पर सोता है।