ठाकुर प्रसाद
सीतापुर पिसावा संदेश महल
करमलकुईयां स्थित हरदेव राजा स्थान पर चल रही श्रीराम कथा के अंतर्गत रविवार को कथा वाचक हरिओम प्रेमी जी महाराज के मुखारविंद से भगवान श्रीराम जन्म की कथा का दिव्य प्रसंग प्रस्तुत किया गया। जैसे ही कथा में राम जन्म का उल्लेख आया, पूरा पंडाल “जय श्रीराम” के उद्घोष से गूंज उठा। भक्तों ने प्रसन्नचित्त होकर पुष्प वर्षा की और झूमते हुए प्रभु के प्राकट्य का उल्लास मनाया।
कथा वाचक हरिओम प्रेमी जी ने बताया कि अयोध्या के महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ का संकल्प लिया। उनके आदेश पर श्यामकर्ण अश्व को चतुरंगिणी सेना के साथ भेजा गया। महाराज दशरथ ने समस्त तपस्वियों, वेदपारंगत पंडितों, ऋषियों और मुनियों को आमंत्रित किया। गुरु वशिष्ठ और ऋंग ऋषि की उपस्थिति में यज्ञ का विधिवत शुभारंभ हुआ। पूरे वातावरण में वेद मंत्रों की गूंज और समिधा की सुगंध फैल गई।
यज्ञ पूर्ण होने पर राजा दशरथ ने यज्ञ का प्रसाद स्वरूप प्राप्त खीर अपनी तीनों रानियों — कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा — को अर्पित की। प्रसाद ग्रहण करने के फलस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी को, पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में जब सूर्य, मंगल, शनि, वृहस्पति और शुक्र अपने-अपने उच्च स्थान पर विराजमान थे, उसी पावन घड़ी में महारानी कौशल्या ने भगवान श्रीराम को जन्म दिया। उनके रूप को देखकर समस्त देवता प्रसन्न हुए और आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी। तत्पश्चात् महारानी कैकेयी के गर्भ से भरत और महारानी सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का अवतरण हुआ।
श्रीराम जन्म के साथ ही सम्पूर्ण अयोध्या नगरी उत्सव में डूब गई। करमलकुईयां के पंडाल में भी भक्तों ने दीप प्रज्वलित कर, शंख-घंटों के साथ जयघोष किया। महिलाएं मंगलगीत गाने लगीं और श्रद्धालु ‘राम लला’ के प्राकट्य की आनंदमय वेला में भावविभोर हो उठे।
कथा स्थल पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा के दौरान क्षेत्र के अनेक गणमान्य नागरिक, महिला मंडल और युवा भक्तों ने सेवा व्यवस्था संभाली। कार्यक्रम के अंत में भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया।