
✴️ सदा न संग सहेलियां ✴️
सदा न संग सहेलियां, सदा न राजा देश।
सदा न रूप रसाल यह, सदा न तन सन्देश।।
सदा न तन सन्देश, झूठी माया की माया।
वाजिद कहे दादू सम, नाम सदा सुखदाया।।
सदा न सुख के दिन रहे, सदा न दुःख के काल।
सदा न जीवन एक-सा, सदा न भाग्य विशाल।।
सदा न भाग्य विशाल, सब भ्रम जग की रीत।
वाजिद कहे बिचार कर, राखो हरि में प्रीत।।
सदा न प्रीत परीजनों, सदा न प्रेम सजन।
सदा न सौंह शरीर की, सदा न ममता धन।।
सदा न ममता धन, सब मृगतृष्णा जानी।
दादूपंथी वाजिद कहे, नाम अमर हि पानी।।
सदा न राज महल रहे, सदा न रूप रंग।
सदा न वैभव मान यह, सदा न तन के संग।।
सदा न तन के संग, तजि देह का अहंकारा।
वाजिद कहे सुजान जन, नाम अमर आधार।।
सदा न रैन सुहाग की, सदा न दिन अनुराग।
सदा न मौसम एक-सा, सदा न सुख अनुराग।।
सदा न सुख अनुराग, मन मोहक माया।
वाजिद कहे दादू सम, नाम अमर हरि राया।।
सदा न साथ सखा मिलें, सदा न संग सहेल।
सदा न फूल खिलें सदा, सदा न चन्दन बेल।।
सदा न चन्दन बेल, मिटे सब देह अभिमाना।
वाजिद कहे सजग रहो, हरि नाम है ठिकाना।।
सदा न रूप जवानी यह, सदा न शोभा रूप।
सदा न श्रृंगार भाव यह, सदा न मन में धूप।।
सदा न मन में धूप, तजि काम क्रोध विकारा।
वाजिद कहे संतन सम, नाम सदा उजियारा।।
सदा न तन यह साथ दे, सदा न सांस चलाय।
सदा न मन यह स्थिर रहे, सदा न माया भाय।।
सदा न माया भाय, जग सब स्वप्न समाना।
वाजिद कहे समभाव रख, हरि नाम ठिकाना।।
सदा न जग में मान यह, सदा न यश अपमान।
सदा न दिन उजियार के, सदा न रैन निदान।।
सदा न रैन निदान, अंत सबको आना।
वाजिद कहे जो नाम ले, वही भवपार पाना।।
